बुधवार, 30 अप्रैल 2025

ईश्वर का दिखना

 ईश्वर का दिखना

जहां -जहां
जब -जब ईश्वर दिखना था
वहां-वहां जानबूझकर चुप लगा जाते थे
कैसे तों भरमाते थे
ईश्वर के नाम पर इथर -उधर दौड़ाते थे
जहां जिधर जब उसे दिख जाना था
वहां उधर तब उस पर पर्दा देते थे
कुछ का कुछ बता देते थे
छिपा देते थे
भटका देते थे

उन्हें मालूम था कि कण-कण में है ईश्वर
फिर भी सबने मिलकर धूल की निंदा की
धूल को भूल जाने को कहा
कुछ ऐसे कि ईश्वर पर ही धूल डाल दिया
ईश्वर को ही छिपा दिया धूल में
उन्हें अच्छी तरह मालूम था
कि हर पत्थर में ईश्वर है
लेकिन उन्होंने सिर्फ एक पत्थर उठाया
और उस पर रंग पोत कर
ऊंची दीवारों वाले कमरे में बंद कर दिया
ताकि अपने कमर में लटकती हुई चाबी से
ईश्वर का दिखना और छिपना नियंत्रित कर सकें

उन्हें मालूम था
कि सारा ब्रह्माण्ड ही ईश्वर की अभिव्यक्ति है
ईश्वर  का प्राकट्य है
यानी कि मूर्ति
उन्होंने पत्थरों को घायल करते हुए
एक नई मूर्ति ईजाद की
और हर जगह मूर्तित
हर पत्थर में झांकते हुए ईश्वर का दिखना बंद करा दिया

उन्हें मालूम था कि कुत्ता-बिल्ली -बंदर,
सिंह -सर्प -भालू-हाथी और मगर
सब एक ही तरह धरती पर जन्म लेते हुए
जैविक रूप से अमर बने हुए हैं इस धरती पर
उन्होंने अमरता कि नयी परिभाषा गढ़ी
और मनुष्य जाति को उल्टा खड़ा कर दिया
धरती की ओर प्राय:झुकी रहनें वाली आंखों को
धरती से विमुख कर आसमान दिखा दिया

ऐसा सब औरों की तरह ही
अपने ‍"पापी पेट " के लिए किया था
यद्यपि उन्हें मालूम था कि
शरीर का उत्तम स्वास्थ्य धर्म का साधन है
उन्हें यह भी मालूम था कि
ज़ों भी  पेट में जाता है वहीं  जीवन का मर्म है
अन्न ही धन है से भी तक की यात्रा करते हुए
उन्होंने अपने मुहावरों में पेड़ को ही पापी कह दिया
इसका भी हमें शर्म है।

17/01/2025
@रामप्रकाश कुशवाहा