जनाकांक्षाओं की भीड़
अलग-अलग दिमागों मे कैद है
जिन्दगी की नाव
समय की नदी में
कर्म के पतवार से ही
गति और दिशा हासिल करती है
सारा जादू
अंगूठे और उंगलियों मे छिपा हुआ है
कर्म हाथों का गुणधर्म है
और कर्मरहित मनुष्य
अपनी सारी बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद
संभावनाहीनता और अक्षमता मे कैद
डॉल्फिन बनकर रह जाता है ।
रामप्रकाश कुशवाहा
31-12-2018