शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

चेहरों की यह किताब ....

इस मंच पर जो बोल रहा होता है
वह भी वास्तव में चुप रहता  है
भीतर-भीतर कुढ़ता,चिढ़ता,पढ़ता है
फिर भी करता जाता है पसंद  ...

आदमी का शक्ल लेकर घूमती हैं यहाँ
सनकी मानसिकताएं और तृप्त -अतृप्त इच्छाएँ
बेहद अक्लमंद और कम - अक्ल दोनों ही
अपने होने को प्रदर्शित कर रहे होते हैं
ऐसा लगता है कि जैसे किसी चोर-दरवाजे से
झांक कर देख रहे हों लोगों के भीतर का सच .....

कुछ चुपचाप अकेले  पड़े होते  हैं फेसबुक पर ...
तो कुछ गिरोह बंद रूप में
कुछ घुले कुछ मिले तो कुछ हिले से
तो कुछ सिर्फ जीते दिखते हैं द्वंद्व -फंद
कुछ डरे -डरे दबे -सहमे से
तो कुछ हैं अनगढ़ -मनबढ़ निर्बंध
कुछ बेहद शालीन तो कुछ खतरनाक इरादों के साथ
कुछ सुखद झोंकों की तरह तो कुछ तूफानी
कुछ इंसानियत से भरे तो कुछ शैतानी
कुछ आदान - प्रदान योजना के अंतर्गत
प्रथम द्रष्टया साधू सज्जन भगत
अजब -गजब है फेसबुक यानि चेहरों की यह किताब ...