गुरुवार, 22 सितंबर 2016

जाति-दंश

(सुनील यादव के लिए)




कट्टरता पड़ोस में बची रहेगी 
तो तुममें भी लौट आएगी एक दिन
एक दिन आक्रामक क्रोध का सामना करते-करते हो जाओगे हिंसक
पडोसी जीते हुए अपनी जाति और धर्मएक दिन शोधेगा खोदेगा पूछेगा
उस दिन अतीत से पूछकर तुम्हें बतानी ही होगी अपनी जाति
और वह जाति मनुष्यता की न होकर
किसी जानवर के नाम पर होगी !
इस देश में जन्मे हो तो भागकर कहाँ तक जाओगे अपनी जाति छोड़कर
अपने जातीय नायकों को तलाशो
नहीं मिले जाति का कोई यशस्वी प्रेत
तो दंड-बैठक करो और करो कुछ ऐसा कि
तुम्हारी जाति में भी जातीय नायक पैदा हो सकें ....
अधिक शरमाने और भरमाने की जरुरत नहीं है
आदर्श,क्रांति और प्रतिशीलता के नाम पर
यूटोपिया के आसमान से गिरने पर
अटकने के लिए खजूर तलाशो
ताकि आसमान से गिरो तो खजूर पर अटक सको
न कि सीधे गिर पड़ो जमीन पर
तलाशो अपना विकल्प
क्योंकि मूर्खता का बचा हुआ एक भी रोगी
सारी दुनिया में संक्रामक मूर्खता फैला सकता है
उनके नारों को सुनते हुए भी
क्रांति हो जाने के भुलावे में भूखा मत सोओ
खोमचा लगाकर भी बचो और बचाओ अपना अस्तित्व
ताकि परिवर्तन के दर्शकों और कर्णधारों में तुम भी हो सको शामिल....
जाति –प्रथा समाप्त हो जाए तो ठीक
समाप्त न होने तक रचो अपना स्वाभिमान
अपनी उपलब्धियां अपनी कहानियां
ताकि सारी रात चलने वाली कहानियां
सुबह होने तक भी ख़त्म न हों
थक जाएँ कहानियां सुनाकर तुममें हीनता-ग्रंथि उपजाने वाले
सृजित कर लो प्रतिरोध की इतनी गालियाँ
कि उन्हें गाते हुए पहुंचा जा सके नयी सभ्यता के निर्माण तक !