मेरी दृष्टि में हिंदुत्व भी अपनी अवधारणा में इतिहास की प्रति-इस्लामिक सृष्टि ही है. इस दृष्टि से मुग़लकाल में जो भी समुदाय इस्लाम स्वीकार करने से बच गया वह सभी हिंदू है.जिस तरह भारतीयता की मूल दृष्टि वसुधैव कुटुम्बकम में व्यक्त होती है .उसे देखते हुए भारतीय संस्कृति के उत्तराधिकार्यों को अपनी वैचारिक शुद्धता और भावात्मक श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए हिंदुत्व के नाम पर इस्लाम का हूबहू प्रतिरूप बनाने से यथासंभव बचना चाहिए .किसी भी कौम का अपनी अच्छाइयों -अच्छी परम्पराओं को भुलाना नहीं चाहिए .सर्व समावेशी भारतीय संस्कृति की कई विशेषताएँ भावी मानवता के लिए भी उपयोगी हो सकती हैं .यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस्लाम का प्रवर्तन यहूदियों के उस दम्भपूर्ण प्रतिक्रिया में भी पैगम्बर मुहम्मद साहब नें किया था जो तत्कालीन अरब में दूसरों में हीनता फैलाकर उन्हें अपमानित कर रहे थे .कालांतर में इस्लाम के अनुयायिओं में भी यहूदी धर्म वाली क्रूरता आ गयी .उसी की संतुलनात्मक और प्रतिक्र्यात्मक क्रूरता भारत में सिक्खों और बाद में आर.एस.एस. की विचारधारा के माध्यम से भारतीयोंमें भी आ गयी है .यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि अरबियों का बुत शब्द से आशय बुद्ध की मूर्तियों से प्रारंभ में था .बौद्ध धर्म वास्तव में एक अनीश्वरवादी धर्म था .उसका अनीश्वरवाद इस्लाम की आस्तिक विचारधारा के प्रतिकूल था .इन तथ्यों को इतिहास की रोशनी में देखने की जरुरत है
एक अन्य बात यह है कि मध्यकाल के सभी धर्मों में इस दुनिया की अवहेलना करने और पारलौकिक दुनिया के महिमामंडन की प्रवृत्ति पाई जाती है .वैसा इस्लाम और हिदुत्व में भी है .इस्लाम के अनुयायी हर घटना को अल्लाह की इच्छा का परिणाम मानने के कारण किसी भी घटना या शासक के नैतिक -अनैतिक या सही -गलत होने का चिंतन नहीं करते .यही बोध देने के प्रयास में हसन और हुसैन शहीद हो गए .उनका बलिदान पहली बार इस्लामी जगत को यह सन्देश सौंपता है .इसके बावजूद इस्लामी जगत के अब तक के रक्त रंजित ऐतिहासिक अनुभवों को देखते हुएशासक के नैतिक -अनैतिक या सही -गलत होने का चिंतन नहीं करते .यही बोध देने के प्रयास में हसन और हुसैन शहीद हो गए .उनका बलिदान पहली बार इस्लामी जगत को यह सन्देश सौंपता है .इसके बावजूद इस्लामी जगत के अब तक के रक्त रंजित ऐतिहासिक अनुभवों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि उनकी शहादत से पूरे समुदाय नें कुछ सीखा . कभी भीतर की ईमानदारी जैसी महत्वपूर्ण अवधारणा देने वाला विश्व का यह बहुसंख्यक धर्म और उसके अनुयायी मानव जाति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भूल गए हैं .उनकी भोली धर्म निष्ठा उन्हें ज्ञान और मानव -विकास का विरोधी बना रही है .विश्व के भावी कल्याण की दृष्टि से भी- भारत और यूरोप का अनुभव बताता है कि मुसलमानों की भी भलाई ,सुरक्षा और विकास के लिए भी दुनिया का गैर-इस्लामी होना अत्यंत जरुरी है.. इस्लाम जिसतरह का अल्लाह को समर्पित एक कबीले का सपना देखने वाला धर्म है.उसे देखते हुए कल्पना करें कि जैसे ही सारी मनुष्य जाति इस्लाम स्वीकार कर लेगी सारे संघर्ष समाप्त हो जाने चाहिए.विडम्बना यह है कि यदि कभी ऐसा होता है तो आशंका यही है कि उस दिन मानव-जाति की सारी समझदारी की स्वतंत्रता प्रतिबंधित एवं डिलीट हो जाएगी..और मानव जाति का विकास स्थगित हो जाएगा .मेरे दिमाग में ऐसे विचार क्यों उठ रहे हैं इस पर मुस्लिम जगत को चिंतन करना चाहिए,...