शनिवार, 15 अगस्त 2015

गणतंत्र

स्वाधीनता दिवस पर इस बार मैं कुछ नहीं बोला सिर्फ दूसरों का देशराग सुनता रहा न बोलने का एक कारण यह भी था कि मुझे जनतंत्र और गणतंत्र के शब्दार्थ में और व्यवहार में अंतर लग रहा है .गण समूह वाची संज्ञा है .यदि हमारा गण तंत्र दल -तंत्र या समूह तंत्र होने का अर्थ वहन कर रहा हो तो सही ही है ..हम सिर्फ अपना मत ही जन या व्यक्ति के रूप में देते हैं जबकि पूरा राजनीतिक प्रशासनिक ढांचा गण अर्थात समूह वाद को बढ़ावा देता है .पिछले आम चुनाव में मत पार्टी को ध्यान में रखकर दिए गए थे और इस आम चुनाव में सिर्फ मोदी यानि एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर .इसका मतलब यह हुआ कि जनता नें सांसदों के गुणदोष पर ध्यान ही नहीं दिया .ऐसा ही लगभग कांग्रेस और दूसरी पार्टियाँ भी करती हैं .वे जनसेवा की संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कोई सर्वे नहीं करती हैं .प्रत्याशी बनने की योग्यता का आधार किसी प्रतिष्ठित नेता का पूर्व परिचित होना है .बड़े नेता जनसेवा के आधार पर नहीं बल्कि चाटुकारिता और स्वामिभक्ति के आधार पर लोगों को टिकट दिलाते रहते हैं .इन्ही तथ्यों के आधार पर मैं अपने देश की व्यवस्था को जनतांत्रिक नहीं बल्कि गणतांत्रिक मानता हूँ .इस बिंदु पर आपका क्या ख्याल है !