सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

दैत्याकार छायाएं

सब फूले हुए थे
दंत-कथाओं के दैत्यों जैसे
हर कोई उससे बहुत बड़ा दिखता था
जितना कि वह था ....

उनमें से कई तो नितान्त अभिनय में थे
बहुत कुछ रामलीला के रावण जैसे
कतार में टंगे कैलेण्डर जैसे
श्रृंखलाबद्ध मुखौटे लटकाए

जिनके अभिनय पर
चरों और फ़ैल रही थी दहशत
दंगे हो गए थे
और मारे गए थे काफी लोग

उनमें से कइयों को तो
व्यक्तिगत स्तर पर जानता हूँ मैं
कई तो बिलकुल पिददी
लगभग मक्खियों जैसे
यदि अखबारों ने
सुक्ष्म दर्शी की भूमिका
न अदा की होती तो ....

वे अपनी-अपनी छायाएं लड़ने का
नोक -झोंक भरा खेल खेलते
तिलस्मी खिलाडी -ऐयार !

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

यात्रा

एक भीड़ इधर
एक भीड़ उधर
बीच में भगदड़
एक शेर इधर
एक शेर उधर
बीच में गीदड़ ....
हर यात्री दिशाहीन
मंजिल का पता नहीं
रस्ते भर फैले हुए
यात्रा के दलाल ...
हर जीवन
भविष्य की दिशा में जाता है
जबकि हर पूर्वनिर्धारित रास्ता
किसी बासी मंजिल का पता बतलाता है
अनसुलझे और भ्रमित वर्त्तमान की
चक्करदार गलियों में
बार-बार घुमाता है ...
हर नयी मंजिल
नए रस्ते मांगती है
हर नया सृजन
बिलकुल नयी आवश्यकताओं की पीठ पर
बैठा हुआ आता है
हर नया सृजन और सर्जक
निर्माण की पुरानी आदतों से उबा हुआ होता है
हर नए निर्माण
नयी घटना के लिए
पुरानी रूढ़ियाँ व्यर्थ होती हैं
व्यर्थ हो जाते हैं सारे संसाधन .....
क्योंकि जिन्हें बदलना है
उन्हीं से सहयोग नहीं लिया जा सकता
जिन्हें निरस्त करना है
न ही दिखाई जा सकती है उन पर करुणा
इसतरह स्वयं बाहर निकले बिना
कुछ भी बदला नहीं जा सकता .....
14.10 .2016

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

सच

सच बोलना आसान नहीं होता
सच लिखना आसान नहीं होता
बाजार में अच्छा सामान नहीं है
बिकने का अवसर अच्छा है
घटिया सामान खुश है
मूल्य तो मिलना है बाजार में ही
सोच कर बिकने वाला और खरीदार खुश है


क्या करूं यार बिकने का मन नहीं करता
बिकने के लिए लिखने का मन नहीं करता
सिर्फ दिखाने के लिए दिखने का मन मन नेहीं करता
ऐसा नहीं है कि मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है
मैं सिर्फ बतियाना चाहता हूँ
किताबियाना नहीं
लोगों की लोगों से बात-चीत बंद है
लेकिन कितबिया रहे हैं
कहने को कुछ नहीं होता है
फिर भी कहते रहते होते हैं लोग
यह कुछ और नहीं लोगों को जीने की आदत है
खूब है पढ़ने का कारोबार
चाहे हो बेकार -खुश हूँ !