मनुष्य-भगवान! !
वे संकटग्रस्त थे
और भयानक असुरक्षाबोध से घिरे हुए थे
उनका सामुदायिक अस्तित्व नेतृत्व विहीन हो सकता था
उनका उत्तराधिकार विहीन राजा बूढ़ा हो रहा था
और उसका अंत सुनिश्चित था
उन्हें ऐसा नायक चाहिए था
जो किसी अदृश्य और अनुपस्थित ईश्वर का विकल्प बन सके
घटनाएं भाग्य और संयोग से शासित न हों
सब कुछ मनुष्य और उसकी सामर्थ्य के नियंत्रण में हो
तब तक यूनानी दार्शनिक प्लेटो नें
अपनी रिपब्लिक नहीं लिखी थी
जो नक्कारों के वैवाहिक जनाधिकार का विरोधी था
जो प्रजनन यानी कि सिर्फ चुने हुए श्रेष्ठ जनों के ही संतानोत्पत्ति के पक्ष में था......
समाज के बुद्धिजीवियों नें समय के सबसे
समझदार और साहसी मनुष्य को
भविष्य का उत्तराधिकारी जनने के लिए चुना
एक निर्विवादित और सुपरीक्षित पिता
जो विश्व का मित्र भी होनें की पात्रता भी रखता हो ....
एक भूतपूर्व राजा
जो बुद्ध से पहले अपना राज-पाठ छोड़कर
सत्य के ज्ञान की खोज में भटका था
उसे धरती पर अपनी परम्परा का अभिभावक
बनने के लिए तैयार किया गया....
उसकी सहमति और कठोर प्रशिक्षण के बाद ही
धरती पर देखा जा सका एक मनुष्य-भगवान
राज-वंश आगे बढ़ा
उसका होना एक सर्वोत्तम मनुष्य की जीववैज्ञानिक निर्मित भी थी
वह सिर्फ संयोग,प्रार्थना और आस्था का ही उत्पाद नहीं था !
11/12/2024