रविवार, 6 जनवरी 2019

साहित्य मे रुचि- दोष और चरित्र- वैविध्य

आचार्यों ने हर संचारी भाव को काव्य  मे रस-सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण माना है ।अरस्तू ने भी विरेचन के उद्देश्य से हर भाव को महिमामंडित किया है ।  विवाह के अवसर पर स्त्रियाँ दोष निवारण और प्रेम बढ़ाने के लिए गाली गाती हैं  । इसीलिए साहित्य मे रुचि-दोष और स्वभाव दोष कभी  प्रश्नांकित नहीं किया जाता ।साहित्य का तो उद्देश्य ही मनुष्य जाति  के चरित्र वैविध्य को सामने लाना है । यदि वह खलत्व से परिचित कराता है तो टीकाकरण जैसा पूर्व सुचेतित करने की भूमिका में होता है ।जब आदर्श और उदात्त को जीता है तो वैसा ही मानसिक परिवेश सम्प्रेषित और निर्मित करता है । बहुत पहलें मैने रुचिदोष का प्रश्न उठाया था ,अब लगता है अनावश्यक था ।