मंगलवार, 22 जनवरी 2019

धर्म और अधर्म

धर्म और अधर्म
सारी दिशाएं अपनी हैं
सारी धरती अपनी है
सारे लोग अपने हैं
और मै मनुष्य को
इतनी तरह से जीते हुए देखकर
आश्चर्य से भर गया हूँ
कितने रीतिरिवाजों
और कितनी प्रथाओं का सर्जक है आदमी
कितने शब्दों और कितने विश्वासों का रचनाकार!
कितने अन्धविश्वासों  और कितने झूठों का जीवनहार
और मै
उनके सारे कार्यों का अनुकरण करने मे समर्थ
मना किया गया कि क्या- क्या मुझे करना चाहिए
और क्या नहीं  !
इतनी शर्तो और
इतनी परतों में जी सकता है आदमी
जानने के बाद भी
वही-वही दुहराने की इच्छा
मेरी मर गयी है
ऊब गया हूँ मै
कर्मकाण्डो की दुरूहता
और बारम्बारता से
मै क्यो कुछ नया नहीं कर सकता ?
नहीं जी सकता नया 
और क्यो कुछ नया जीने की स्वतंत्रता
मुझे विधर्मी बना सकती है !
मै क्यों नहीं  बना सकता
सारी दुनिया की अच्छाइयों  का संग्रहालय  !
नहीं जी सकता अपनी समझ से चुना हुआ अच्छा
और क्यों- कोई तो मुझे बताए !
रामप्रकाश कुशवाहा
07/11/2018
"Maine  apana Ishwar  badal diya hai" is a  collection of philosophical  poems with modern  scientific and psychological aproch . These poems are  also create civilisationl descorse  on Indian God and religion