रविवार, 12 जनवरी 2014

एक गोपनीय विभागीय आख्या

कुछ -छोटी -छोटी अड़चनें हैं
एक मंदिर
एक मजार
जिनके कारण अक्सर ही
ट्रैफिक जाम हो जाया  करता है। … 

दो चेहरे वाला आदमी

मैं उस आदमी से परेशान हुँ
जिसे मैं अपना मित्र समझता था
और जिसने आज तक मेरे साथ कुछ भी बुरा नहीं किया है
न ही सोचा है
लेकिन मैंने दूसरों के साथ उसे पाया है बुरा सोचते

लेकिन जब मैं उसे
दूसरों के बारे में कुछ बुरा सोचते देखता हूँ
उससे घृणा  करने लगता हूँ
बनता है जब वह दूसरों का दुश्मन
मुझे वह अपना भी दुश्मन लगने लगता है

वह कई बार मुझसे पूछता है -
मैंने तो आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा  !
अपने इस मासूम अर्धसत्य के साथ
वह मुझे दुनिया का सबसे बुरा आदमी लगाने लगता है

इसे मैं ऐसे भी सोचना चाहता हूँ
कि किसी बुरे आदमी की बुराई का गवाह होना कितना बुरा है
जबकि वह दूसरों के लिए हमेशा नियम की बातें किया करता है
सिर्फ स्वयं को पूरी चालाकी के साथ
सारे नियम क़ानून से स्वयं को मुक्त और ऊपर समझता है

अपने आदर्शवादी चेहरे के बावजूद मेरी दृष्टि में
वह एक चतुर और सजग बेईमान है
ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई आधा बेईमान हो और आधा ईमानदार
या किसी के लिए ईमानदार और किसी के लिए बेईमान

मेरी दृष्टि में बेईमानी सिर्फ किसी एक व्यव्हार में न होकर
पुरे स्वभाव और मानसिकता में होती है
कि दूसरों के बारे में बुरा सोचना भी एक हिंसा है
एक क्रूरता जो कि संवेदनशून्यता से जन्म लेती है

कि सिर्फ अपने ही बारे में सोचता हुआ
दूसरों के बारे में पूरी तरह उदासीन आदमी
एक बुरा आदमी हो सकता है
कि जो दूसरों के बारे में बुरा सोचे
उसे सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए एक अच्छा आदमी मानना
मुझे ही अपनी दृष्टि में एक बुरा आदमी बना देगा

जब वह दूसरों यानि समाज के लिए बुरा है
मेरे भी लिए एक बुरा आदमी है
सौहार्द के मानवीय पर्यावरण को दूषित करने वाला
व्यवहार की क्रूरता का प्रचारक
एक आत्मकेंद्रित और संवेदनशून्य बुरा आदमी !

मुझे अपनी मित्रता पर संदेह है
उस दो चेहरे वाले आदमी के साथ !