भाषा विग्यान की दृष्टि से भैस शब्द महिषी का तद्भव है। महिष मे मह धातु के कारण महा ईश यानि महेश का ही पर्यायी लगता है।इस तरह इसका सम्भावित अर्थ महान स्वामी ही रहा होगा। संस्कृत मे राजमहिषी माहारानी केअर्थ मे ही प्रचलित रहा है । इसे देखते हुए मेरा मानना है कि लोक ने ही भैस को प्यार से महिषी यानि रानी के समान कहा होगा ।भैसो का एक स्थिर चाल से रानी
के समान चलना भी इस उपमा का आधार रहा होगा। इसी आधार पर भैंस के पति महोदय भी भैंसा घोषित कर दिया गया। एक तथ्य यह भी है कि भारतीय मूल की भैसे भारतीय हाथियों की तरंह अफ्रीकी जंगली भैंसा से भिन्न प्रजाति की है और कम आक्रामक, मुड़ी सींग वाली होती हैं। भैंस पर सवार महिषासुर भी कोई द्रविड़ भारतीय राजा ही रहा होगा। सम्भव है पश्चिम से आए किसी प्रवासी योरोपीय कबीलाई मूल की रही होगी। जो लौह युंग के परिष्कृत हथियारों की मदद से उसकी हत्या कर दी हो ।
इसी तरह दुर्ग शब्द यानि किले का मानवीकरण करते हुए उसका स्त्री रूप दुर्गा का विकस किया गया हं। दुर्ग यानि जहाॅ गमन या जाना कठिन हो। इस अर्थ मे दुर्गा दुर्ग की ही अधिष्ठात्री देवी रही है।
इसे देखते हुए दुर्गा और महिषासुर की कथा मुझे कबीलाई युग की किसी ज़ोन आफ आर्क की आदिम लोक कथा की स्मृति का संस्कृतकरण लगाता है। इस युद्ध का विजेता स्त्री पक्ष तो प्रगतिशील लगता है लेकिन बलात्कारी असुर का परमरा से काला होना वर्ण एवं रंगभेद आधारित नस्लीय घृणा की मानसिकता छिपाए लगता है। जैसा कि मैने दुर्गा नामकरण ही किला युग के बाद का बताया है । बलात्कारी से लड़ने वाली कोई बहादुर युवती रही भी होगी तो भी दुर्गा नामकरण परवर्ती हीं है।
जो भी हो किसी चरित्र का आधुनिक समाज शास्त्रीय विश्लेषण तो ठीक है लेकिन किसी तथ्य को लेकर जब किसी कथा के चरित्र का पाठ बदलने की मांग करें तो इतना अवश्य ध्यान रखें कि नामकरण और चरित्र यानि कथा में नकारात्मक चरित्र का वयवहार दोनों भिन्न दृष्टिया है। किसी बलात्कारी चरित्र को अपना रिश्तेदार घोषित करते समय भी बलात्कार का समर्थन नहीं किया जा सकता है। हाॅ प्राचीनकाल की जातीय स्मृतियों में सब कुछ जायज या महान और पवित्र ही नहीं है। अतीत के मनुष्य की मूर्खता पर प्रश्न उठना सभ्यता के विकसनशील एवं जीवित होने का सूचक है।
के समान चलना भी इस उपमा का आधार रहा होगा। इसी आधार पर भैंस के पति महोदय भी भैंसा घोषित कर दिया गया। एक तथ्य यह भी है कि भारतीय मूल की भैसे भारतीय हाथियों की तरंह अफ्रीकी जंगली भैंसा से भिन्न प्रजाति की है और कम आक्रामक, मुड़ी सींग वाली होती हैं। भैंस पर सवार महिषासुर भी कोई द्रविड़ भारतीय राजा ही रहा होगा। सम्भव है पश्चिम से आए किसी प्रवासी योरोपीय कबीलाई मूल की रही होगी। जो लौह युंग के परिष्कृत हथियारों की मदद से उसकी हत्या कर दी हो ।
इसी तरह दुर्ग शब्द यानि किले का मानवीकरण करते हुए उसका स्त्री रूप दुर्गा का विकस किया गया हं। दुर्ग यानि जहाॅ गमन या जाना कठिन हो। इस अर्थ मे दुर्गा दुर्ग की ही अधिष्ठात्री देवी रही है।
इसे देखते हुए दुर्गा और महिषासुर की कथा मुझे कबीलाई युग की किसी ज़ोन आफ आर्क की आदिम लोक कथा की स्मृति का संस्कृतकरण लगाता है। इस युद्ध का विजेता स्त्री पक्ष तो प्रगतिशील लगता है लेकिन बलात्कारी असुर का परमरा से काला होना वर्ण एवं रंगभेद आधारित नस्लीय घृणा की मानसिकता छिपाए लगता है। जैसा कि मैने दुर्गा नामकरण ही किला युग के बाद का बताया है । बलात्कारी से लड़ने वाली कोई बहादुर युवती रही भी होगी तो भी दुर्गा नामकरण परवर्ती हीं है।
जो भी हो किसी चरित्र का आधुनिक समाज शास्त्रीय विश्लेषण तो ठीक है लेकिन किसी तथ्य को लेकर जब किसी कथा के चरित्र का पाठ बदलने की मांग करें तो इतना अवश्य ध्यान रखें कि नामकरण और चरित्र यानि कथा में नकारात्मक चरित्र का वयवहार दोनों भिन्न दृष्टिया है। किसी बलात्कारी चरित्र को अपना रिश्तेदार घोषित करते समय भी बलात्कार का समर्थन नहीं किया जा सकता है। हाॅ प्राचीनकाल की जातीय स्मृतियों में सब कुछ जायज या महान और पवित्र ही नहीं है। अतीत के मनुष्य की मूर्खता पर प्रश्न उठना सभ्यता के विकसनशील एवं जीवित होने का सूचक है।