गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

सच

सच बोलना आसान नहीं होता
सच लिखना आसान नहीं होता
बाजार में अच्छा सामान नहीं है
बिकने का अवसर अच्छा है
घटिया सामान खुश है
मूल्य तो मिलना है बाजार में ही
सोच कर बिकने वाला और खरीदार खुश है


क्या करूं यार बिकने का मन नहीं करता
बिकने के लिए लिखने का मन नहीं करता
सिर्फ दिखाने के लिए दिखने का मन मन नेहीं करता
ऐसा नहीं है कि मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है
मैं सिर्फ बतियाना चाहता हूँ
किताबियाना नहीं
लोगों की लोगों से बात-चीत बंद है
लेकिन कितबिया रहे हैं
कहने को कुछ नहीं होता है
फिर भी कहते रहते होते हैं लोग
यह कुछ और नहीं लोगों को जीने की आदत है
खूब है पढ़ने का कारोबार
चाहे हो बेकार -खुश हूँ !