शनिवार, 25 जनवरी 2020

ज्ञातव्य

"विवेचिता" और "सत्या "की सभी पंक्तियाँ ,चिंतन के गहन निष्कर्ष-क्षणों को शब्दों में बांध लेने के प्रयास में तो जन्मी ही हैं ; इसकी सभी रचनाएं ,अपनी सर्जना और उद्देश्य के स्तर पर -डायरी की उन पंक्तियों की तरह हैं ,जो भावों और विचारों को सुरक्षित रख पाने के लोभ में ही लिपिबद्ध कर ली जाती है .अथवा अन्य तस्वीरों की तरह ये भी अंतर्मन के छायाचित्र हैं ; जिसमें जीवन-प्रवाह को इन स्मृति-चित्रों के रूप में कैद कर लिया गया है . 
      यदि इन रचनाओं में प्रयुक्त उपकरणों को छोड़ दें तो अपनी सम्पूर्ण निर्मिति एवं अभिप्रेत की दृष्टि से ये किसी पूर्वनिर्मित ज्ञानकोश की विशिष्ट छाया में रचित नहीं हैं . यह कहना सत्य की समस्त रचनाओं को देखते हुए आश्चर्यजनक प्रतीत हो सकता हैं ,लेकिन है पूरी तरह सच .

सोमवार, 20 जनवरी 2020

सम्पादकों के ई -मेल

सम्पादकों के ई -मेल -
1. हंस, संजय सहाय (संपादक), editorhans@gmail.com
2. पाखी, प्रेम भारद्वाज (संपादक), premeditor@gmail.compakhimagazine@gmail.com
3. बया, गौरीनाथ (संपादक), rachna4baya@gmail.com
4. पहल, ज्ञानरंजन (संपादक), edpahaljbp@yahoo.co.ineditorpahal@gmail.com
5. अंतिम जन- दीपक श्री ज्ञान (संपादक)- antimjangsds@gmail.com2010gsds@gmail.com
6. समयांतर- पंकज बिष्ट (संपादक)- samayantar.monthly@gmail.comsamayantar@yahoo.com
7. लमही- विजय राय (संपादक)- vijayrai.lamahi@gmail.com
8. पक्षधर- विनोद तिवारी (संपादक)- pakshdharwarta@gmail.com
9. अनहद- संतोष कुमार चतुर्वेदी (संपादक)- anahadpatrika@gmail.com
10. नया ज्ञानोदय- लीलाधर मंडलोई (संपादक)- nayagyanoday@gmail.combjnanpith@gmail.com
11. स्त्रीकाल, संजीव चन्दन (संपादक), themarginalized@gmail.com
12. बहुवचन- अशोक मिश्रा (संपादक)- bahuvachan.wardha@gmail.com
13. अलाव- रामकुमार कृषक (संपादक)- alavpatrika@gmail.com
14. बनासजन- पल्लव (संपादक)- banaasjan@gmail.com
15. व्यंग्य यात्रा, प्रेम जनमेजय (संपादक), vyangya@yahoo.compremjanmejai@gmail.com
16. अट्टहास (हास्य व्यंग्य मासिक), अनूप श्रीवास्तव (संपादक), anupsrivastavalko@gmail.com
17. उद्भावना- अजेय कुमार (संपादक)- udbhavana.ajay@yahoo.com
18. समकालीन रंगमंच- राजेश चन्द्र (सम्पादक)- samkaleenrangmanch@gmail.com
19. वीणा-राकेश शर्मा,veenapatrika@gmail.com
20. मुक्तांचल-डॉ मीरा सिन्हा,muktanchalquaterly2014@gmail.com,
21. शब्द सरोकार-डॉ हुकुमचन्द राजपाल,sanjyotima@gmail.com,
22. लहक-निर्भय देवयांश,lahakmonthly@gmail.com
23. पुस्तक संस्कृति। संपादक पंकज चतुर्वेदी।editorpustaksanskriti@gmail.com
24. प्रणाम पर्यटन हिंदी त्रैमासिक संपादक प्रदीप श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
25. PRANAMPARYATAN@YAHOO.COM
26. समालोचन वेब पत्रिका, अरुण देव (सम्पादक)
devarun72@gmail.com
27. वांग्मय पत्रिका, डॉ. एम. फ़िरोज़. एहमद, (सम्पादक), vangmaya@gmail.com
28. साहित्य समीर दस्तक (मासिक), कीर्ति श्रीवास्तव (संपादक), राजकुमार जैन राजन (प्रधान सम्पादक), licranjan2003@gmail.com
29. कथा समवेत (ष्टमासिक), डॉ. शोभनाथ शुक्ल (सम्पादक), kathasamavet.sln@gmail.com
30. अनुगुंजन (त्रैमासिक), डॉ. लवलेश दत्त (सम्पादक), sampadakanugunjan@gmail.com
31. सीमांत, डॉ. रतन कुमार (प्रधान संपादक), seemantmizoram@gmail.com
32. शोध-ऋतु, सुनील जाधव (संपादक), shodhrityu78@yahoo.com
33. विभोम स्वर, पंकज सुबीर (संपादक), vibhomswar@gmail.comshivna.prakashan@gmail.com
34. सप्तपर्णी, अर्चना सिंह (संपादक), saptparni2014@gmail.com
35. परिकथा, parikatha.hindi@gmail.com
36. लोकचेतना वार्ता, रविरंजन (संपादक), lokchetnawarta@gmail.com
37. युगवाणी, संजय कोथियल (संपादक), yugwani@gmail.com
38. गगनांचल,डॉक्टर हरीश नवल (सम्पादक), sampadak.gagnanchal@gmail.com
39. अक्षर वार्ता, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा (प्रधान संपादक), डॉ मोहन बैरागी (संपादक) aksharwartajournal@gmail.com
40. कविकुंभ, रंजीता सिंह (संपादक), kavikumbh@gmail.com
41. मनमीत, अरविंद कुमार सिंह(संपादक), manmeetazm@gmail.com
42. पू्र्वोत्तर साहित्य विमर्श (त्रैमासिक), डॉ. हरेराम पाठक (संपादक), hrpathak9@gmail.com
43. लोक विमर्श, उमाशंकर सिंह परमार (संपादक), umashankarsinghparmar@gmail.com
44. लोकोदय, बृजेश नीरज (संपादक), lokodaymagazine@gmail.com
45. माटी, नरेन्द्र पुण्डरीक (संपादक), Pundriknarendr549k@gmail.com
46. मंतव्य, हरे प्रकाश उपाध्याय (संपादक), mantavyapatrika@gmail.com
47. सबके दावेदार, पंकज गौतम (संपादक), pankajgautam806@gmail.com
48. जनभाषा, श्री ब्रजेश तिवारी (संपादक), mumbaiprantiya1935@gmail.comdrpramod519@gmail.com
49. सृजनसरिता (हिंदी त्रैमासिक), विजय कुमार पुरी (संपादक), srijansarita17@gmail.com
50. नवरंग (वार्षिकी), रामजी प्रसाद ‘भैरव’ (संपादक), navrangpatrika@gmail.com
51. किस्सा कोताह (त्रैमासिक हिंदी), ए. असफल (संपादक), a.asphal@gmail.comKotahkissa@gmail.com
52. सृजन सरोकार (हिंदी त्रैमासिक पत्रिका), गोपाल रंजन (संपादक), srijansarokar@gmail.comgranjan234@gmail.com 
53. उर्वशी, डा राजेश श्रीवास्तव (संपादक), urvashipatrika@gmail.com 
54. साखी (त्रैमासिक), सदानंद शाही (संपादक), shakhee@gmail.com
55. गतिमान, डॉ. मनोहर अभय (संपादक), manohar.abhay03@gmail.com
56. साहित्य यात्रा, डॉ कलानाथ मिश्र (संपादक), sahityayatra@gmail.com
57. भिंसर, विजय यादव (संपादक), vijayyadav81287@gmail.com
58. सद्भावना दर्पण, गिरीश पंकज (संपादक), girishpankaj1@gmail.com
59. सृजनलोक, संतोष श्रेयांस (संपादक), srijanlok@gmail.com
60. समय मीमांसा, अभिनव प्रकाश (संपादक), editor.samaymimansa@gmail.com
61. प्रवासी जगत, डॉ. गंगाधर वानोडे (संपादक), gwanode@gmail.com pravasijagat.khsagra17@gmail.com
62. शैक्षिक उन्मेष, प्रो. बीना शर्मा (संपादक), dr.beenasharma@gmail.com
63. पल प्रतिपल, देश निर्मोही (संपादक), editorpalpratipal@gmail.com
64. समय के साखी, आरती (संपादक), samaysakhi@hmail.in
65. समकालीन भारतीय साहित्य, रणजीत साहा (संपादक), secretary@sahitya-akademi.gov.in
66. शोध दिशा, डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल (संपादक), shodhdisha@gmail.com
67. अनभै सांचा, द्वारिका प्रसाद चारुमित्र (संपादक), anbhaya.sancha@yahoo.co.in
68. आह्वान, ahwan@ahwanmag.comahwan.editor@gmail.com
69. राष्ट्रकिंकर, विनोद बब्बर (संपादक), rashtrakinkar@gmail.com
70. साहित्य त्रिवेणी, कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड (संपादक), sahityatriveni@gmail.com
71. व्यंजना, डॉ रामकृष्ण शर्मा (संपादक), shivkushwaha16@gmail.com
72. एक नयी सुबह (हिंदी त्रैमासिक), डॉ. दशरथ प्रजापति (संपादक), dasharathprajapati4@gmail.com
73. समकालीन स्पंदन, धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल' (संपादक), samkaleen.spandan@gmail.com
74. साहित्य संवाद , संपादक - डॉ. वेदप्रकाश, sahityasamvad1@gmail.com
75. भाषा विमर्श ( अपनी भाषा की पत्रिका), अमरनाथ (प्रधान संपादक), अरुण होता (संपादक), amarnath.cu@gmail.com
76. विश्व गाथा, पंकज त्रिवेदी (संपादक), vishwagatha@gmail.com 
77. भाषिकी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल, प्रो. रामलखन मीना (संपादक), prof.ramlakhan@gmail.com
78. समवेत, संपादक-डॉ.नवीन नंदवाना, editordeskudr@gmail.com
79. तदभव, संपादक: अखिलेश, akhilesh_tadbhav@yahoo.com
80. रचना संसार, भारत कात्यायन (संपादक), rachanasansar@gmail.com
81. शब्द सुमन मासिक पत्रिका, सम्पादक-डॉ रामकृष्ण लाल ' जगमग', 2015shabdsuman@gmail.com
82. अनुराग लक्ष्य, संपादक- विनोद कुमार, vinodmedia100@gmail.com
83. सरस्वती सुमन (मासिक), संपादक- आनन्दसुमन सिंह, saraswatisuman@rediffmail.com
84. आधारशिला (मासिक), संपादक- दिवाकर भट्ट, adharshila.prakashan@gmail.comeditor.adharshila@gmail.com
85. प्रेरणा-अंशु (राष्ट्रीय मासिक), संपादक- प्रताप सिंह, prernaanshu@gmail.com
86. युवादृष्टि (मासिक), संपादक- बी सी जैन, suggestion.abtyp@gmail.comabtypyd@gmail.com
87. संवदिया(सर्जनात्मक साहित्यिक त्रैमासिकी), संपादक- अनीता पंडित, प्रधान संपादक- मांगन मिश्र'मार्तण्ड', samvadiapatrika@yahoo.com
88. सोच विचार, संपादक-डॉ. जितेन्द्र नाथ मिश्र, sochvicharpatrika@gmail.com
89. त्रैमासिक आदिज्ञान, संपादक-जीतसिंह चौहान, adigyaan@gmail.com
90. पतहर तिमाही, संपादक-विभूति नारायण ओझा, hindipatahar@gmail.com
91. चौराहा (अर्द्धवार्षिक), संपादक - अंजना वर्मा, anjanaverma03@gmail.com
92. निराला निकेतन पत्रिका बेला, संपादक -संजय पंकज, dr.sanjaypankaj@gmail.com
93. इंदु संचेतना(साहित्य परिक्रमा), गंगा प्रसाद शर्मा'गुण शेखर'(प्रधान संपादक),थिएन कपिंग(कार्यकारी संपादक,चीन),बिनय कुमार शुक्ल(संपादक), indusanchetana@gmail.comindusanchetana.blogspot.in
94. समय सुरभि अनंत (त्रैमासिक ), सम्पादक- नरेन्द्र कुमार सिंह, samaysurabhianant@gmail.com
95. औरत मासिक पत्रिका, संपादक डॉ विधुल्लता ,भोपाल (मध्यप्रदेश), aurat.vidhu@gmail.com
96. वार्ता वाहक-श्रीवत्स करशर्मा(संपादक), vartavahak@gmail.com
97. नागरी संगम-डॉ हरिपाल सिंह(प्रधान संपादक), nagrilipiparishad1975@gmail.com
98. सेतु (पिट्सबर्ग से प्रकाशित), अनुराग शर्मा, setuhindi@gmail.com
99. स्त्री, प्रो. कुसुम कुमारी (संपादक), chitra.anshu4@gmail.com
100. चिंतन दिशा, संपादक-हृदयेश मयंक, chintandisha@gmail.com 
101. आधुनिक साहित्य, संपादक डॉ. आशीष कंधवे, aadhuniksahitya@gmail.com
102. अनभै, संपादक- डॉ.रतनकुमार पाण्डेय, anbhai@gmail.com
103. कथाबिंब - सं.डॉ.माधव सक्सेना अरविंद, kathabimb@gmail.com
104. संयोग साहित्य- सं.मुरलीधर पाण्डेय, lordsgraphic@gmail.com
105. नई धारा – संपादक- शिवनारायण, editor@nayidhara.com
106. नया पथ- संपादक- मुरली मनोहर प्रसाद सिंह/चंचल चौहान, jlsind@gmail.com<br style="co
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रविवार, 19 जनवरी 2020

धर्म पर पुनर्विचार की आवश्यकता

धर्म पर पुनर्विचार की आवश्यकता

आज धर्म पर पुनर्विचार की आवश्यकता इसलिए पड़ती है कि पहले का मनुष्य आज की तरह तार्किक नहीं था | अच्छी और उपयोगी बातों को धर्म के नाम पर समाज में फैला दिया जाता था | यह मान लिया जाता था कि ये बाते स्वयं सिद्ध या चिन्तक-मनीषियों द्वारा कही गयी हैं और उन्हें बिना प्रश्नांकित किए मानना जरुरी है | धर्म किस प्रकार नेतृत्व वर्ग के आदेशों से जुडा है इसका पता बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के मूसा के नेतृत्व में मश्र से यहूदियों के महा-निष्क्रमण से चलता है |मूसा जब पहाड़ी पर चढ़ कर चिंतन कर रहे थे,उस समय अपने अनुयायियों की धैर्यहीनता तथा सभी के सोने को पिघलाकर एक देवता बनाकर पूजने का प्रयास करने वाले अपनें ही बीच के दूसरे नंबर के नेतृत्व को तथा उसकी बात मानने वालों को बर्बरतापूर्वक हत्या करवाते हैं | यहूदियों के लिए मूसा के निर्देश कितने महत्वपूर्ण थे कि बहुत बाद में ईसा मसीह को भी उसी के आधार पर सूली यानि ऊँचे पर लटका दिया गया | यहूदी आज भी मूसा के उपदेशों से ही संचालित होते हैं जबकि ईसा मसीह के अनुयायियों नें बाद में यहूदियों को समझना छोड़ कर दूसरी जातियों को उपदेश देना शुरू किया | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्र की अवधारणा का जन्म भी मूसा के द्वारा यहूदियों को संगठित करने की घटना से ही जोड़ा जाता है | मूसा नें यहूदियों को संगठित किया | उस संगठित शक्ति के नेतृत्व नें यहूदियों नें नगर के नगर लुटे और भयंकर कत्लेआम कर काला सागर के पास की वह थोड़ी सी जमीन वापस छीनी जो उनके अनुसार उनके पुरखों की थी | यहूदी धर्म की यह जनसँख्या यहूदियों के लिए खतना अनिवार्य करने वाले उनके पहले पैगम्बर ईब्राहिम के लगभग हजार वर्ष बाद जब खतना किए हुए लोगों की एक बड़ी संख्या मिश्र में हो जाती है .बहुत पहले युसूफ के साथ मिश्र में आए यहूदियों के वंशज मूसा के नेतृत्व में एक -दूसरे को पहचान कर मूसा के नेतृत्व में मिश्र से बाहर निकलने का सफल प्रयास करते हैं |एक संगठित सैन्य शक्ति के रूप में एक लड़ाकू धर्म ,जाति और राष्ट्र के संस्थापक बनते हैं जो यहूदी कहलाती है | मूसा नें यहूदियों को संगठित सैन्य शक्ति के रूप में जो नया चेहरा दिया उसका धर्म की मानवीय संवेदना से कुछ लेना-देना नहीं था | वह इस अंधी आस्था पर आधारित था कि यहोवा के नाम पर जिसका भी खतना हुआ है ,वह दूसरे मनुष्यों से विशिष्ट है | यह सीधे-सीधे दूसरों को हेय और स्वयं यानि यहूदियों को श्रेष्ठ समझने वाला धर्म था | यह विशिष्टता-बोध जीता था और दूसरों का अपमान करता था | इस्लाम के प्रवर्तक स्वयं मुहम्मद साहब के ऊपर भी नीचा देखने की भावना से कूड़ा फेकने का जिक्र मिलता है | इस प्रकार धर्म के नाम पर संगठित श्रेष्ठता और संगठित अपमान करने वाली कट्टरता का सम्बन्ध यहूदियों से है |
           मुहम्मद साहब नें इस्लाम की खतना प्रथा यहूदियों से ही ली थी |.हाँ अरबी भाषा के पहले अक्षर अल्लिफ के अनुसार उन्होंने ईश्वर को यहोवा कहकर अल्लाह कहा जिसका आशय था सृष्टि में पहला (जैसे अल्लिफ अरबी वर्ण माल का पहला अक्षर है उसी प्रकार दुनिया के पीछे सक्रिय पहली शक्ति को उन्होंने अल्लाह कहा | मुहम्मद साहब की जीवन गाथा पढ़ाकर ऐसा लगत है कि प्र्रम्भ में उनका उद्देश्य गौतम बुद्ध और ईसा मसीह की परंपरा का ही मसीहा बनने का था लेकिन जब विरोधियों द्वारा उन पर प्राणघातक हमले बढ गए तो उन्होंने अपना रास्ता मूसा की शैली का कर लिया | खतना और कट्टरता दोनों ही इस्लाम में मूसा के यहूदियों वाली ही रही है | यही कट्टरता जब भारत में आयी तब यहाँ के लोगों को मूर्तिपूजक मानकर वही प्रयोग भारतीयों के साथ भी हुए | प्रतिक्रिया में संगठन के महत्व को देखते हुए मध्य युग में खालसा और सिक्ख पंथ का गठन गुरु गोविन्द सिंह नें किया | वे स्वयं तो मारे गए लेकिन उनकी नीव का भवन बाद में महाराणा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिक्खों नें देखा | ईसाईयों नें ईसा मसीह के नेतृत्व और प्रभाव में सेवा का संगठन बनाया लेकिन मूसा की हिंसक संगठन वाली परंपरा इस्लाम के अनुयायियों की परंपरा सिक्खों में होती हुई ब्रिटिश काल में निर्मित होने वाले हिन्दू संगठनों तक पहुंची | इसे मैं इतिहास में एंटीबाडी बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में देखता हूँ | वह मुसलमानों की तरह ही एक ऐतिहासिक अनुभव प्रक्रिया का परिणाम है -यह कट्टरता की पर्तिक्रियात्मक प्रक्रिया के रूप में है | हिन्दू नामकरण से लेकर उसका चरित्र गढ़ने तक इस्लाम के ऐतिहासिक अनुभव ही इसे शक्ति और उर्जा देते रहे हैं | मैं आज भी दुनिया की किसी कट्टरता के पीछे मूसा का असहिष्णु और क्रोधी चेहरा झांकते हुए पाता हूँ |
               
मैं जनता हूँ कि धर्म का यह भारतीय चेहरा नहीं है हाँ इसे संगठन का चेहरा अवश्य कहा जा सकता है -एक ऐसा संगठन जिसे मुस्लिम कट्टरता नें रचा है अपनी प्रतिक्रिया में | भारत के मसीहाओं का असली चेहरा बुद्ध और महात्मा गाँधी के चहरे से मिलता-जुलता हो सकता है ,ईसा मसीह से भी | मुहम्मद साहब का प्रारंभिक आचरण बताता है कि वे भी ईसा मसीह की तरह के ही पैगम्बर होना चाहते थे लेकिन परिस्थितियों नें उन्हें मूसा की शैली का पैगम्बर बना दिया | मुझे् गता है कि उनकी आत्मा की शांति के लिए इस्लाम के अनुयायियों को ही आगे आना होगा | वे इंसानियत के प्रति अपने कर्तव्यों को समझकर लचीले बनेंगे तभी वे अपने जैसे सनकी कबीले के बनाने के स्थान पर इंसानियत का एक बार फिर फैलाना देख पाएगे |
        ( क्योंकि सबसे पहले मूसा नें ही एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना की थी जो सिर्फ यहूदियों के लिए हो  |यहूदियों को सगा और श्रेष्ठ और दूसरों को पराया मानने वाला दुनिया का पहला सांप्रदायिक संगठन वही था | क्योंकि मुहम्मद साहब नें यहूदियोे की प्रतिस्पर्धा में अपना धार्मिक संगठन 'इस्लाम 'खड़ा किया था ,इसलिए ईसाई धर्म से कुछ कथाएँ लेने के बावजूद इस्लाम यहूदी धर्म का ही प्रति-रूप है | यही कारण है कि जैसे यहूदी दूसरे समुदायों के साथ नहीं रह सकते वैसे ही मुसलमान भी नहीं रह सकते | क्योंकि यह मूसा के शुद्धतावादी नरसंहारों का ऐतिहासिक अचेतन छिपाए है | इस लिए हर बढ़ती जनसँख्या के साथ यह भी अलग राष्ट्र मांगता रहेगाा |दूसरी कौमें नहीं देना चाहेंगी तो उन्हें लड़ना ही होगा | इसराइल ,पाकिस्तान और कश्मीर यह सब एक ही ऐतिहासिक -सांस्कृतिक अचेतन की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं | बिना मानवतावादी आधुनिकतावादी विज्ञानवादी मुस्लिम नवजागरण के मुझे भी कश्मीर समस्या का कोई हल  नहीं दिखता |)
        धर्म की पिछली यात्रा को देखकर मैं आज भी आश्चर्य से भर जाता हूँ कि मध्य युग के संगठित अपराधियों नें ईश्वर को भी नहीं छोड़ा |आज भी उनका व्यवहार नहीं बदला है | वे क्योंकि तलवार से हत्या कर सकते थे इसलिए वे इसकी घोषणा कर सकते थे कि ईश्वर उनसे सहमत है | एक मित्र नें मुझसे धर्म की परिभाषा पूछी थी -क्या मैं ऐसा कह सकता हूँ कि प्राचीन काल से ही संगठनों की दादागिरी ही धर्म है | धर्म वही है जिसे विजेता कहता है ....
              भाग्य और प्रारब्धवाद के आधार पर राजा के पक्ष में जनमत तैयार करते ब्राह्मण अपनी भूमिका में बने रहे और उनकी इस भूमिका का लाभ बाद में मुग़ल शासकों को भी मिला | आज भी यह तंत्र आनुवंशिक व्यवस्था का सम्मान करता है | आज के भारतीय लोकतंत्र में ही कई ऐतिहासिक घराने सक्रिय हैं |एक बार निष्ठां तय हो जाती है तो उसमें भगवान की खोज शरू हो जाती है | जिसे देखो और जिधर देखो उधर ही यह तंत्र भक्त पैदा करता रहता है |ये भक्त अपनी जिम्मेदारियों से निरंतर भागते रहते हैं और जिम्मेदारियों का निरवाह करने के लिए एक अदद भगवान की खोज में लगे रहते हैं | यद्यपि इतिहास में कुछ बहुत चालाक ब्राह्मणों नें ब्राहमणों के तटस्थ रहने के जातीय निर्देश को नहीं माना और स्वयं राज सत्ता हथिया ली | इनमें से पुष्यमित्र शुंग का नाम सर्वोपरि है | भारत में गुलामी का मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करने वाले आध्यात्म के नाम पर समर्पण वादी भक्ति का प्रचार किया गया  |