मंगलवार, 5 जून 2012

भारतीय आसितकों के लिए एक उत्तर-आधुनिक पाठ




छोटी संरचनाएं बड़ी संरचनाओं को रच रही हैं
और बड़ी संरचनाएं टूटकर बिखर रही हैं
छोटी संरचनाओं में.....

ग्रह-नक्षत्रों और अणुओं-परमाणुओं में
टूटकर बिखर गए इस बड़े ब्रहमाण्ड की तरह
बड़ा र्इश्वर भी टूटकर बिखर ्रगया है
जीवनों-आत्माओं की छोटी-छोटी र्इकाइयों में....
बदल गया है छोटे-छोटे र्इश्वरों की भीड़ में.....
छोटे-छोटे र्इश्वर रच रहे हैं
एक बड़ा र्इश्वर
तय कर रहे हैं एक बड़े र्इश्वर की निर्णायक इच्छाएं.....
तत्वत: अनेक घटिया और अराजक र्इष्वरों से
बना होता है सामूहिक र्इश्वर-समय
रचता हुआ निर्लज्जता का एक नया इतिहास....

अंधेरे में छिपे हुए सांप
झाडि़यों में छिपे बाघ
जल में छिपे हुए मगर
और भीड़ में छिपे हुए जहरखुरान की तरह
धोखेबाज कभी भी कर देगें आउट
किसी भी देह से उसकी आत्मा को
र्इश्वर की तरह.......

होते रहने और होने की कशमकश में
सब असमंजस में हैं
कुछ भी तय नहीं है
न ही जिन्दगी.....न ही मौत !
न ही सफलता...न ही असफलता !

नेतृत्व के लिए
कुछ बड़े संगठित र्इश्वरों की होड़ में
प्रायोजित होता रहता है इतिहास
रचे जा रहे सामूहिक पर्यावरण में
बने रहते हैं प्रभावी र्इश्वर नेतृत्व में
खोल और बन्द कर रहे हैं दूसरों के भाग्य.....

असितत्व की होड़ में टकरा रहा है एक-दूसरे से....
संघर्ष कर रहा है एक-दूसरे के विरुद्ध
इतना कि यहां जिन्दा रहने के लिए
प्रेम और विश्वास से अधिक डर और अविश्वास ही
सुरक्षा कवच है.......र्इश्वरीय बरदान है.......

इस उत्तर-आधुनिक समय में
किसी पर विश्वास न करना ही
संभावनाशील और बुद्धिमान बने रहना है
मैं न होता तो क्या होता की समझदारी के साथ
गुनगुनाते हुए गालिब को
बचाए रहना है अपनी जिन्दगी के रूप में
अपने र्इश्वर का अनितम स्टेशन.......यह दुनिया-
जो तत्वत: बनी है छोटे-छोटे र्इश्वरों से.........