रविवार, 8 अप्रैल 2012

मानसिक मुक्ति भी जरुरी है

हम सब सभ्यता रूपी अभियांत्रिकी के पुर्जे हैं .हम अपने समय और समाज से इतने प्रभावित रहते हैं की हम उससे बाहर निकल कर कुछ सोच हीं नहीं पाते हैं . सबसे बड़ी समस्या उस भावुकता की है जो सच्चे जुडाव
से पैदा  होती है . यह एक तरह से बचपन के प्रति हमारी वफादारी ही है . इस तरह हमारी अच्छाई ही हमारी बुराई  बन जाती है.साम्प्रदायिकता की सबसे बड़ी समस्या यही है.हमारा ज्ञान ही हमें एक सभ्यतिक यंत्र बना देता है .हम सभी किसी न किसी संसकृति से संस्कारित हैं .हमारा मस्तिष्क बचपन से प्राप्त  सूचनाओं और आदतों का अतिक्रमण नहीं कर पता. हम सभी अभी  अभी इसी धरती पर लिखे गये पृष्ठों की तरह है..हम यह सोच ही नहीं पते की प्रभाव के रूप में ही सही हमारी इच्छाएँ और मानसिकता तक दूसरो ने ही लिखी है.. हम जीवन भर क्रिआयें नहीं प्रतिक्रियाएं करते है .क्योकि हम जो कुछ भी कर रहे होते हैं उनके सम्बन्ध दूसरों कि इच्छाओं से होता है.