शनिवार, 25 जनवरी 2014

श्रद्धा का समाजशास्त्र !

तुमको जीना यथास्थिति को जीना  है
तुम्हारी भक्ति स्वीकृति है
दूसरों  की सत्ता की  अधीनता की
तुमको जीना
सहमति है पूर्ण यथास्थिति से
और पूरी तरह कर देना है स्थगित स्वयं को
दूसरों की इच्छा के सम्मान के पक्ष में
समर्पित होकरव्यक्तित्वहीन हो जाना है पूरी तरह.…

हे प्रभु (वर्ग)!
मैं असहमत हूँ
असंतुष्ट हूँ तुम्हारी बनायीं दुनिया से
इसलिए तुम मेरी अश्रद्धा के लिए
मुझे नरक (जेल ) देने की  मत सोचो।

आखिर मुझे भी तो अपनी दुनिया
रचने का अधिकार मिलना ही चाहिए
विकल्प रचने का अधिकार
अपने हिस्से की सृजनशीलता से