शनिवार, 18 मई 2013

समय का जीना

लोग बीमार हो रहे हैं
लोग निकलते जा रहे हैं एक-दुसरे को जीने की आदत से
ऊंघने लगे हैं संवेग उदास मन की देहरी पर
सभी गिर गए हैं जैसे अपने-अपने अंधे कुओं में एक साथ
एक दू :स्वप्न को जीने की तरह
अपनी-अपनी उनीदी चीखों से घबराए ...