सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

दैत्याकार छायाएं

सब फूले हुए थे
दंत-कथाओं के दैत्यों जैसे
हर कोई उससे बहुत बड़ा दिखता था
जितना कि वह था ....

उनमें से कई तो नितान्त अभिनय में थे
बहुत कुछ रामलीला के रावण जैसे
कतार में टंगे कैलेण्डर जैसे
श्रृंखलाबद्ध मुखौटे लटकाए

जिनके अभिनय पर
चरों और फ़ैल रही थी दहशत
दंगे हो गए थे
और मारे गए थे काफी लोग

उनमें से कइयों को तो
व्यक्तिगत स्तर पर जानता हूँ मैं
कई तो बिलकुल पिददी
लगभग मक्खियों जैसे
यदि अखबारों ने
सुक्ष्म दर्शी की भूमिका
न अदा की होती तो ....

वे अपनी-अपनी छायाएं लड़ने का
नोक -झोंक भरा खेल खेलते
तिलस्मी खिलाडी -ऐयार !