ईश्वर का मिलना
ईश्वर को पाने के लिए
घर छोड़ कर भागना जरुरी था क्या !
या ईश्वर का मिलना सिर्फ उनके लिए था
जिनका घर और बस्ती के भीतर
मन नहीं लगता ....
ईश्वर को बताया गया था
संसारिकता की सरहद के पार
जिसे पाने के लिए कष्टों कि उफनती हुई नदी में
कूद पड़ना था
अनवरत तैरते हुए
डूबने से बच निकलना था
कैसे भी हो
तमाम बाधाओं को पार करते हुए
उस तक पहुंचना था ....
जैसे ईश्वर को जिंदगी में कोई दिलचस्पी नहों थी
बहती हुई जिंदगी कि बस्ती को लावारिस छोड़ कर
दुनिया के घोषित परिचित सच को छोड़कर
एक अनजाने ईश्वर की खोज में भाग चलना था
अंत में दौड़ ख़त्म हो जाने के बाद
दौड़ के सहयोगी व्यवस्थापकों को ही विजेता घोषित करते हुए
दबे स्वर में एक ईमानदार असफल आयोजक नें यह बताया -
ईश्वर को जिंदगी के भीतर ही ढूँढना था
ईश्वर को तुम सब बहुत पीछे छोड़ आए हो ......
@रामप्रकाश कुशवाहा
15\01\2024