शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

बकरी का रूपक

सब तो ठीक है
बकरियों का क्या होगा
जहाँ तक जाती है दृष्टि
बकरियां ही बकरियां हैं

बकरिया संतुष्ट हैं
बकरियां आश्वसत  हैं
बकारियों  को देख-देख
बकरियां खिलमस्त हैं
बकरियों की गिनती कर गड़ेरिये  भी मस्त है
गिन -गिन कर पस्त है
थोडा-थोडा त्रस्त है

बकरियों में सींग की उलझन है
ताने हैं तिरकट है
जीने का संकट है
अलग-अलग बाड़े हैं
गड़ेरियों के पालतू कुत्ते भी ठाडे हैं
मेमने से मौत तक वक्त के सिंघाड़े हैं
हाडे हैं जाड़े हैं
जीने का मकसद भी भोडे और भांडे है

वैसे तो लगता है
बकरी है बकरी के लिए
दुनिया के वृत्त में
बकरियों का हिस्सा है
बकरियों का किस्सा है
बकरियों की  रीति है
लेकिन जन्म भी बकरियों का
दावत गड़ेरिये की
बकरे कि प्रीति भी
गड़ेरिये की जीत है

दृष्टिपथ जहाँ तक है
सींगें ही सींगें हैं
डरी-डरी सींगें है
सींगों में डर है गड़ेरिये कि लाठी का
भयानक असर है ...

बकरी तो बकरी है
बार-बार रीझ रहीं
मिमियाती भीग रहीं
गड़ेरिये का लाठी धुन जैसे संगीत है
बकरी का जीवन ही
जन -मन का गीत है