बुधवार, 30 अप्रैल 2025

मन की मुक्ति

 मन की मुक्ति

मन हमारे चेतन अस्तित्व का  खलनायक नहीं
उसके संचालन और निर्देशन का कर्ता नायक हैं
इसीलिए मन को मारने की नहीं
सिर्फ सुधारने और संवारने की जरूरत है

मन हमारे अस्तित्व और हमारी चेतना का विकार
हमारी आत्मा का बंधन नहीं है
हमारी अनुभूतियों, अनुभवों और इच्छाओं से बना
स्मृतियों और बोध का संग्रहालय हमारी बुद्धि
हमारे ज्ञान का प्राथमिक उपभोक्ता हैं
एक अपरिहार्य साफ्टवेयर है
जिसे चुन-चुन कर दुनिया की सारी अच्छाइयों से
हमें समृद्ध करना है

मन से भागना नहीं है
मन हमारी ही चेतना और परिवेश की संतान हैं
मन को पुकारना है
मन को दुलारना है
मन से खेलना है
मन से कसरतें करवानी है
मन को मजबूत करना है
मन को सारे सद्गुणों से भर देना है
मस्तिष्क के आंतरिक अंतरिक्ष में
मन की सारी सूंदर और रोमांचक
भविष्यमुखी कल्पनाओं को
मुक्त और जिज्ञासु पक्षियों की तरह उड़ने देना है

हमारा मन हमारी आत्मा का सगा है
हमारा स्वस्थ मन हमारी आत्मा का
किसी भी प्रकार से दुश्मन नहीं है
विष्णु या कृष्ण जैसे किसी पर -उपकारी चरित्र में
कभी भी अपने मन को नहीं मारा
बल्कि अपने बलशाली -धैर्यवान और विवेक -संयमित मन  से
अपने जमाने के दुःखियों और हारते लोगों को उबारा !

मन को सिर्फ सकारात्मक और सहयोगी बनाना है
उसे संपूर्ण सृष्टि का शुभचिंतक योगी बनाना है
मन बंधन नहीं है
सारी दुनिया को बांधने वाला है
बिगड़े  हुओं को सुधारने वाला है
मन को मारना या बांधना नहीं
सिर्फ साधना है...
मन पर अपनी चेतना का नियंत्रण बनाए रखना है

अपने मन को किसी खिलंदड़े शरारती शिशु की तरह
दुर्घटनाओं से बचाने के लिए देखते रहना है
मन को जानते और उसका सुनते रहना है

अकारण और निरपराध मन को मारना आत्महिंसा है
मनुष्य यानी कि एक मन वाले प्राणी के मन को मार देना
एक मनुष्य को उसके मन के सृजनाधिकार को मार देना है
मन को निरस्त कर देना
एक मन से बधिया -वंचित जीवित का
धरती पर निरूद्देश्य विचरना है
मन से मरे एक जिंदा तन का
अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा में
किसी मृतक के समान समय में बीतना है !

11/01/2025
@रामप्रकाश कुशवाहा