बुधवार, 11 जुलाई 2018

हंसता हुआ बाजार

अभी-अभी मिली पुस्तक  "हॅसता हुआ बाजार " की कविताएँ  बाज़ार के प्रति मेरी अब तक की अधिकतम  समझदारी का निवेश है  । इन कविताओं मे अनेक सूक्तियों-सूत्रों ,दृश्यों- दृष्टान्तो  के माध्यम  से  मैने अपनी दृष्टियो- निष्कर्षों  को दूसरों के लिए  सुरक्षित रखने का प्रयास किया हे । इसकी कई कविताएँ  बाजार मे मिलने वाले धूर्तों, ठगी, अपराधियों और  हत्यारों की गम्भीर मनोवैज्ञानिक पहचान कराती है ।  स्पष्ट है कि ऐसी कविताएं सिर्फ कवि कहलाने के लिए न्ही लिखी गयी हैं  ।इन कविताओं के पाठक  यदि इन्हें पढने के बाद कुछ अपराधों और दुर्घटनाओं का शिकार होंने  से बच गए तो मै अपना श्रम सार्थक समझूँगा।
        इस पुस्तक का अतिरिक्त और विशेष आकर्षण युवा आलोचक नलिन रंजन सिंह की"बाजरा से गुजरा हूँ खरीददार नही हूँ "शीर्षक विमरर्शात्मक प्रस्तावना और आवरण पृष्ठ पर प्रिय कवि प्रिंयंकर पालीवाल की अर्थ- समृद्ध टिप्पणी है ।