मंगलवार, 15 जुलाई 2014

यह दुनिया

यह दुनिया जो एक मकड़ी के जाले की तरह है
और मैं भी हूँ उस जाले का एक तार
दूसरों से जुड़ा हुआ
जोड़ता हुआ दूसरों से
दूसरों से बंधा हुआ
बांधता हुआ दूसरों को
मेरा हिलना हिलाता है दूसरों को
मेरा टूटना तोड़ देता है -
संवेदना के कोमल तार
इसी जाले पर दौड़ती है समय की मकड़ी

मैं एक अदृश्य बुनावट का हिस्सा हूँ समाज की
मेरा होना सिर्फ अकेले का
अपनें असम्बद्ध एकांत में होना नहीं है
शायद इसीलिए जब मैं दूसरों को तोड़ता हूँ
स्वयं टूट जाता हूँ
जब मैं छोड़ता हूँ दूसरों को
स्वयं छूट जाता हूँ
मेरी यात्रा एक सामूहिक यात्रा है सम्पूर्ण मानव -जाति की

शायद इसीलिए
मेरे सौभाग्य का ईश्वर
मेरे मित्रों और मेरे चाहने वालों की
शुभकामनाओं से बना हुआ है
दूसरों को मुझसे मिलाने वाली ख़ुशी में रचा-बसा है
मेरी आत्मा का सच्चिदानन्द !

और मेरे दुर्भाग्य का शैतान भी
मुझे नापसन्द करने वालों की घृणा में छिपा हुआ है
उनकी अरुचि से बना हुआ है
मेरे निर्णयों के प्रति असहमतियों से बना है
मेरे अस्तित्व और सार्थकता का प्रतिपक्ष …

मेरा अच्छा या बुरा होना
सिर्फ मेरे भीतर का ही
मेरे भीतर तक ही होना नहीं है।