अलग-अलग धर्मों की अलग-अलग विशेषताएँ हैं । मनुष्य सभी धर्मो से कुछ न कुछ अच्छाई सीख सकता है लेकिन जो सिर्फ एक ही धर्म विशेष को ही सबसे अच्छा मानकर उसे अपनाता है ।उसके ज्ञान-चक्षु बन्द हो जाते हैं । वह अच्छाई के साथ-साथ बुराई को भी सही मानकर जीने लगता है। आने वाला समय सभी धर्मो को ठीक-ठीक समझने वालों का होंगा । सभी धर्म मनुष्य जाति ने ही अच्छे उद्देश्य से ही पैदा किए होंगे लेकिन आज के मनुष्य के लिए पुराने पड़ने के कारण सभी अपनी परिकल्पना मे पिछड़ भी गए हैं ।
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
शनिवार, 12 फ़रवरी 2022
धर्म
हिन्दू धर्म प्रतीकात्मक प्रकृति का है । उदाहरण के लिए गणेश की परिकल्पना तब की गयी होगी जब मनुष्य ने हाथियों को पालने और प्रशिक्षित करने की क्षमता का पता लगा लिया होगा । वह हाथियों की समझदारी पर रीझा होगा । एक प्रशिक्षित हाथी मे ही उसे किसी मनुष्य का दिमाग रखने वाले प्राणी के दर्शन हुए होंगे । हाथियों को गणेश के प्रतिनिधि के रूप मे देखना एक सकारात्मक विश्वास है और यह पर्यावरण के पक्ष मे भी है । अन्धविश्वास की शैली मे होने के बावजूद यह हाथी प्रजाति की जीवन-रक्षा में सहायक है । इसी तरह का तर्क बन्दर प्रजाति के देवता हनुमान के लिए भी कहा जा सकता है । वे बन्दरो को महिमामंडित करते हैं । उसके कारण बन्दर भी मानव समाज में बेरोकटोक आवा-जाही कर पाते हैं ।
कीट खाने वाले उललुओ को किसानों का सहायक होने के कारण लक्ष्मी का वाहक कहा गया है । चूहों का प्राकृतिक शिकारी होने के कारण नागों को अबध्य माना जाता है और उन्हे देवता होने की प्रतिष्ठा भी प्राप्त है । क्योकि हम इन मिथकों के जन्म के पीछे के सही तर्को तक नहीं पहुंच पाते इसलिये वे हमें हास्यास्पद लगते हैं । इस्लाम इस प्रकृति,कुदरत या कायनात को ही एक चमत्कार की तरह देखने वाली आंख देता है । लगभग तीस वर्ष पहले कुरान और बाइबिल दोनों को ही पढा था और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इसलाम की बहुत सी बुराइयों के लिए मुहम्मद साहब सीधे-सीधे जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि उनके अनुयायियों और परवर्ती संगठन तथा सत्ता का नेेतृत्व जिम्मेदार है । नेहरू की तरह उनको भी पुत्र नहीं था । बेटी से ही वंश चलना था जिन्हें (कर्बला के युद्ध में) स्वयं मुसलमानों ने ही मार डाला । दरअसल इस्लाम की नकारत्मकता इतिहास और अनुयायियों की देन है । इस्लाम का जन्म मक्का और मदीना में बिलकुल स्थानीय स्तर पर हुआ था । उनका कहना था कि दुनिया की सारी भाषाओं में पवित्र धर्म ग्रन्थ है । कुरान सिर्फ अरबी बोलने वालों के लिए नाजिल हुई है । अरब की कठिन जीवन-परिस्थितियों को देखते हुए -मुँह में रेत जाने से बचने के लिए मूॅछ न रखना , लगभग सभी पशुओं का मांस खाने की अनुमति देना आदि सही लगेगा । जैसे कृषि प्रधान भारत के लिए गोवध पर प्रतिबन्ध साधार है ।
मुहममद साहब को यह भी कहाँ पता रहा होगा कि उनकी मृत्यु के बाद इस्लाम लूट मार और युद्ध की प्रेरणा के कारण सारी दुनिया मे फैल जाएगा या कुरान पढने और पढवाने के लिए ही अरबी सीखी और सिखाई जाएगी । कुरान के आकर्षण का रहस्य अन्य धर्म ग्रन्थों की तरह उसका काव्यात्मक होना भी है । वह भी एक मध्य एशिया में जन्मा भक्ति पन्थ ही है । मार्क्सवादियो की तरह के कट्टर आदर्शवाद ने उनके अनुयायियों को भी असहिष्णु और हिंसक बना दिया । भटकाव का कारण लडाकू कौमों का उनकी मृत्यु के बाद इस्लाम में शामिल होना था ।
ऐसे ही ईसाई धर्म भी मनुष्य के ईश्वर यानी प्रकृति की दिव्य सत्ता की प्रेमपूर्ण सन्तान होंने की महत्वपूर्ण घोषणा ही है । इस तरह सभी धर्मो से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है । चेतावनी यह है कि उन्हें पूरी तरह सच मानकर जीना मूर्खतापूर्ण भी हो सकता है । इसीलिए प्राय सिर्फ अपने ही धर्म को पूरी तरह सच मानने वाले दंगाई और मूर्ख ही देखने में आते हैं ।
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