गुरुवार, 15 मार्च 2012

जीवन -सूत्र

हम सब सभ्यता रूपी अभियांत्रिकी के पुर्जे हैं .हम अपने समय और समाज से इतने प्रभावित रहते हैं की हम उससे बाहर निकल कर कुछ सोच हीं नहीं पाते हैं . सबसे बड़ी समस्या उस भावुकता की है जो सच्चे जुडाव
से पैदा  होती है . यह एक तरह से बचपन के प्रति हमारी वफादारी ही है . इस तरह हमारी अच्छाई ही हमारी बुराई  बन जाती है.साम्प्रदायिकता की सबसे बड़ी समस्या यही है.हमारा ज्ञान ही हमें एक सभ्यतिक यंत्र बना देता है .हम सभी किसी न किसी संसकृति से संसकारित हैं .हमारा मस्तिस्क बचपन से प्राप्त  सूचनाओं और आदतों का अतिक्रमण नहीं कर पता. हम सभी अभी  अभी इसी धरती पर लिखे गये पृष्ठों की तरह है..हम यह सोच ही नहीं पते की प्रभाव के रूप में ही सही हमारी इच्छाएं  और मानसिकता तक दूसरो ने ही लिखी है.. हम जीवन भर क्रिआयें नहीं प्रतिक्रियाएं करते है .क्योकि हम जो कुछ करते या जीते है उसके निर्धारक प्रायः दूसरे ही होते है 

सभ्यता अभियांत्रिकी

हमारी सभ्यता  की जड़ें गुजर चुके मानव-जाति की समझदारी  से बनी हैं .हम सभी एक पुत्र सभ्यता के वाहक हैं और सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद पूर्वजों के प्रति अपनी निष्ठा ,मोह और ईमानदारी  के कारण एक नयी सभ्यता का पिता बनने से कतराते  हैं . हम सब एक पुरानी सभ्यता रूपी अभियांत्रिकी के पुर्जे हैं .हम अपने समय और समाज से इतने प्रभावित रहते हैं कि   उससे बाहर निकलने की कुछ सोच हीं नहीं पाते हैं . हमारी सबसे बड़ी समस्या उस भावुकता की है जो सच्चे जुडाव से पैदा  होती है . यह एक तरह से बचपन के प्रति हमारी वफादारी ही है . इस तरह हमारी अच्छaई ही हमारी बुराई  बन जाती है.साम्प्रदायिकता की सबसे बड़ी समस्या यही है.हमारा ज्ञान ही हमें एक सभ्यतिक यंत्र बना देता है . .हमारा मस्तिष्क बचपन से प्राप्त  सूचनाओं और आदतों का अतिक्रमण नहीं कर पता. हम सभी अभी  अभी इसी धरती पर लिखे गये पृष्ठों की तरह है.हम यह सोच ही नहीं पाते कि प्रभाव के रूप में ही सही हमारी इच्छाएं  और मानसिकता तक दूसरो ने ही लिखी है.. हम जीवन भर क्रियाएँ नहीं प्रतिक्रियाएं करते है .क्योकि हम जो कुछ करते या जीते है उसके निर्धारक यह दूसरे  ही होते है .