महाशिवरात्रि पर कुछ लिखने के लिए सोचते समय .मुझे लगता है इस रात्रि की कल्पना भय ,अन्धकार और नींद के विरुद्ध जागने के लिए की गयी होगी .इसे सोने की प्रकृति के विरुद्ध जागरण का संकल्प भी कहा जा सकता है .बचपन में इस तिथि को मित्रों के साथ जाग कर देखा था .उस रात जागना भी किसी युद्ध से कम नहीं लगा था .ऐसी आध्यात्मिक साधनाएँ सिर्फ अपनी ही गवाही पर चलती हैं .जैसे जगे तो प्रमाणपत्र ले लिया कि एक रात जगा था .वैसे भी एक रात की नींद जीत लेना कम तो नहीं है .कुछ दे कर ही गया होगा .और कुछ नहीं तो संस्मरण ही .बाकी शिव जी के जिम्मे है .एक रहस्य की बात यह है कि मुझे बड़े लोगों को खुश करने की कला नहीं आती .उलटे उनके नाराज होने का डर अधिक सताता है .व्यक्तिगत रूप में मैं ईश्वर को कम से कम परेशान करना चाहता हूँ .मैं कुछ ऐसा सोचता हूँ कि मेरे परेशान न करने से ईश्वर का जो समय और दिमाग बचेगा उसके इश्तेमाल से ईश्वर दूसरों का भला कर पाएगे .छोटी-मोटी इच्छाएँ मैं परिश्रम से ही पूरी करना चाहता हूँ .कम से कम जीवन-सुविधाओं एवं ख़राब या सामान्य समझी जाने वाली जीवन की परिस्थितियों में भी जीने का अभ्यास बनाए रखा है.दूसरे शब्दों में कहें तो आवश्यकताएं , इच्छाएँ एवं आदतें इतनी सामान्य रखी हैं कि कभी ऐसा लगा ही नहीं कि ईश्वर को बुलाना पड़ेगा अब ! नौकरी भी वही की जो साक्षात्कार की भीड़ में स्वतःस्फूर्त ढंग से बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के मिली .पिताजी नें इतने सम्मान से रखा था कि चापलूसी करना सीखा ही नहीं पाया.उनका भी रवैया अधिक श्रम की कीमत चुकाते हुए भी - कष्ट सहकर ईमानदार बने रहने का था.संभवतः इसी पृष्ठभूमि और संस्कार के कारण ही पूजा कर ईश्वर का ध्यान आकर्षित करने से उलट मेरा प्रयास यह रहा कि ईश्वर मेरी आराम देने और उसे कम से कम छेडने की नीति से प्रसन्न होगा -ऐसा मैं किशोरावस्था में भी सोचता था और आज भी कुछ वैसा ही प्रयास है.कुछअधिक संवेदनशील होने पर ईश्वर का चरित्र ही संदिग्ध लगता रहा है.इसे भी मैंने कदाचित उसके वास्तव में होने पर उसके सुधार की भावना से ही नहीं छिपाया है.कई बार लिखा है.वेसे भी मेरी दिलचस्पी मनुष्य के ईश्वर उसके सामाजिक व्यवहार,उसके नफा-नुकसान,उसकी महत्वाकांक्षाओं को समझने में अधिक है.क्योंकि मानवीय ईश्वर सीधे-सीधे मनुष्य जाति के स्वार्थों का प्रतिरूप मुझे दिखता है.जमीनी ईश्वर के बारे में मार्क्स की टिप्पणियों से भी पूरी तरह सहमत पाता हूँ.अन्धविश्वासों सेमुक्त होने का सबसे अच्छा तरीका यह लगता है कि मानवजाति की उस जनसँख्या से सीखा जाय जो बिना उस अंध-विश्वास के निर्द्वंद्व जीती है.
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
सोमवार, 7 मार्च 2016
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