बुधवार, 30 अप्रैल 2025

सच का ईश्वर

 सच का ईश्वर

इतिहास और आख्यान में
यह पता लगाया जा सकना मुश्किल ही है
कि किस समय किस गधे ,घोड़े या मनुष्य की पीठ  पर बैठकर
निकल रही हो चुकी होती है उसकी ऐश्वर्यमयी शोभायात्रा!
फिर भी अनुमान लगाया! जा सकता है....

महाभारत के आख्यान में वह मुझे
कभी कंस,कभी कालयवन  तो कभी
दुर्योधन के भीतर यैठकर
कृष्ण को ईश्वर बनने के लिए
उकसाता-ललकारता दिखाई देता है

जबकि रामायण में उसकी ओर से
सारे ऐश्वर्य का नैसर्गिक समर्थन और पक्षपात
जैसे सिर्फ रावण के लिए  ही था....

राम और कृष्ण तो रावण और दुर्योधन से प्राप्त
ईश्वरीय घातों और प्रतिघातों  का प्रत्युत्तर  देते हुए ही
प्रतिरोध  की ईश्वरता पा गए....

राम और कृष्ण को यह पता था
कि हर घटना के सूत्रधार के आस-पास ही
अपने छिपे उद्देश्यों के साथ
क्रिया-प्रतिक्रिया,घटना-दुर्घटना के आरम्भकर्ता के रूप में
हुआ करता है नियति का  ईश्वर
जिसे ही वे दैव की इच्छा
यानी विधाता का विधान समझते रहे....

लोक को भी कोई भ्रम न रहे
आश्वस्त और सुखी दिखते क्षणों में ही
बुरी तरह अपमानित कर
दोनों ही धरती के रंगमंच से
छिपी युक्तियों द्वारा वापस बुला लिए  गए
पुरूषार्थ और प्रतिरोध से अर्जित
अपनें लोकविश्रुत ऐश्वर्य से निश्क्रमित
और बावजूद.....

अनुचर -आज्ञाकारी  बेचारा गांधी भी तो
भ्रम में पड़े भक्त की तरह मुफ्त में मारा गया
जबकि प्रचार के पीछे और परदे के छिपाव से अलग
ईश्वर मानवता की आजादी के लिए नहीं बल्कि
दूरगामी  विभाजन की योजना के अन्तर्गत
जिन्ना और गोड़से  को परिमार्जित करने की योजना में
लगा हुआ था

इसतरह जब भी मैं
ईश्वरीय समझे जाने वाले
आख्यानों के बारे में सोचता हूँ
मैं यह देखकर आश्चर्य चकित रह जाता हूँ कि
प्रचलित विज्ञप्तियों से अलग
कई बार समय का ईश्वर
सुख के उत्सव में मंथरा जैसे
किसी अदनें से निर्णायक चरित्र में
अत्यंत गम्भीर चतुराई के साथ
छिपा बैठा होता है...

अनेक बार कड़े  पहरे और परदों के बीच
यत्न से छुपाई गयी
उन निरीह बंदी सुंदरियों में भी
जिनके मुस्कान से विचलित होकर
या जिनके आंसुओ में डूबकर मर जाती थीं बहादुर सेनाएं ..

सम्मानित प्रवर्तक  नें  तो उसपर पूरा विश्वास किया था
लेकिन उसने प्रवर्तक को कभी नहीं बताया कि
उसका असली मकसद ऐसे हत्यारों की फौज तैयार करना है
जिसमें सभी आत्मरक्षा के नाम पर
एक-दूसरे की हत्याएं और युद्ध करेंगे
उसनें प्रवर्तक को यह कभी नहीं बताया कि
उसकी योजना में उसके ही वंशजों की बलि चढाई जानी है ।

जीवन की नई-नई  चुनौतियों का सामना करने के लिए
संस्थागत ईश्वर प्रतिरोध की स्मृति  तो देता है
लेकिन अपने पिछड़ेपन को स्वीकारने के साथ
एक न॓ए अद्यतन नेतृत्व की प्रतीक्षा में ...


05/05/2024