मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

प्रेम और विवाह

प्रेम कोई कार्य नहीं कि उसे किया जाय ,वह तो एक मनो -रासायनिक घटना है | फिर जबरदस्ती प्रेम करने में पिटने और दूसरी ओर से नापसंद किए जाने का व्यावहारिक खतरा भी है | हम जिस दुनिया में रहते हैं उसमें सामाजिक रूप में प्रेम प्रायः सापेक्ष ही दिखता है निरपेक्ष नहीं | इसी आधार पर सम-विषम प्रेम की कल्पना की गयी है | इसी तरह विवाह भी सृजनशील और संघर्षमय जीवन का आरम्भ है |विवाह का सुख एक सहवर्ती या साथ-साथ की गयी यात्रा के सुख जैसा ही हो सकता है | जिसमें चलने , थकने और जोखिम उठाने तक के लिए तैयार रहना चाहिए | सिर्फ संबंधों का वर्त्तमान ही नहीं बल्कि उनकी स्मृतिजीविता भी वैवाहिक जीवन के स्थायित्व का आधार है |.उसमें वर्त्तमान के साथ -साथ संबंधों के इतिहास को भी जिया जाता है | सिर्फ ऐन्द्रिय या अतिरेकपूर्ण सुखवादी जल्दी ही अवसाद और मोहभंग के शिकार हो सकते हैं तथा तलाक के भी