रविवार, 16 अगस्त 2015

रोता हुआ ईश्वर...

कल रात सपने में मैंने देखा कि ईश्वर रो रहा है 
हाँ निस्संदेह ईश्वर ही था वह
उसका चेहरा मेरे पूर्वजों के चहरे से मिलता -जुलता था 
वह रोता जा रहा था
और ऐसा लगता था कि वह भारी अवसाद में है
मुझे अपने सपने से ही डर लग रहा था
इस सोच से कि उसका अवसाद
किसी आत्महत्या के लिए सोचते हुए इन्सान जैसा
उसे भी निरीह और दयनीय बना रहा था
मैंने ईश्वर से पूछा -तुम्हारी क्या प्राब्लम है !
तुम तो अमर ठहरे
तुम्हारी तो हत्या भी नहीं की जा सकती ....
मेरे गंभीर मजाक से वह और जोर-जोर से रोने लगा
बोला यही तो प्राब्लम है कि मैं अमर रहने के कारण
सिर्फ जिन्दा बने रहने के लिए अभिशप्त हूँ
पुरी दुनिया बनाने के बाद मैं बेमतलब और निरर्थक होता जा रहा हूँ
मेरा दुरुपयोग हो रहा है और ज्यादातर प्रार्थनाएँ
दूसरों की हत्याएं करने में साथ देने के लिए आ रही हैं ...
मेरा बनाया इन्सान स्वयं तो पागल होता जा रहा है
मुझे भी पागल बना देगा
देखो बिना संवेदनशीलता और भावुकता के
किसी का भी अंतर्यामी होना संभव नहीं है
और उपेक्षित और अपमानित होकर कोई भी
संवेदनशील शख्स जिन्दा रहना नहीं चाहेगा ....
मेरा अमर होना ही मुझे अभिशप्त बना रहा है
मैं यह दिन देखने के लिए जिन्दा ही क्यों हूँ
जब कोई किसी को भी नहीं पूछता ...
मैं आत्महत्या भी नहीं कर सकता
मैं सोच नहीं प् रहा हूँ कि मैं अपनी इस अभिशप्त अमरता के लिए
मैं किसको गाली दूं
मुझे इन्सान की गाली सुन-सुन कर ईर्ष्या होती है
गाली देकर वह कितना हल्का और प्रसन्न हो जाता है
मैं किसको गाली दूं
मैं यह भी नहीं जानता कि मुझको किसने बनाया
कुछ लोगों को कहते सुनता हूँ कि मुझे इन्सान नें ही बनाया हैं
मैं इन्सान को इस तरह बनने-बनाने का दंड देना नहीं चाहता
यह सच है कि कोई भी अपने निर्माण का विध्वंस नहीं चाहता
मैं भी नहीं
इस दुनिया के विनाश की कल्पना से ही मेरे हाथ -पाव फूल जाते हैं
देखो मेरीभी भावुकता,आत्मीयता और संवेदनशीलता ही मुझे ईश्वर बनाती है
अन्यथा अजर-अमर तो प्रकृति भी है
मैंने इतने संवेदनशून्य और भावुकताविहीन मानवीय समय की
कल्पना नहीं की थी
मेरा अपना पर्यावरण लुप्त हो चूका है
फिर भी मैं जिन्दा हूँ
अपनी इसी अभिशप्त नियति पर मैं रो रहा हूँ ..