बुधवार, 6 दिसंबर 2023

 ईश्वर


मेरे लिए ईश्वर
मेरी सभ्यता का सांस्कृतिक अवचेतन है
सृष्टि और समाज की अवधारणा का
आदिम बीज है
ईश्वर की भिन्न-भिन्न परिकल्पना में
मूझे दिखती हैं भूतपूर्व मनुष्यों के जीवन-काल की
भिन्न-भिन्न परिस्थितिकी
उनके जिन्दा रहने की समझदारियो
और विफलताकारी मूढ़ताओं का भी रहस्य भी
खुलता जाता है

पश्चिम के असुरक्षित, प्रतिस्पर्धी और जोखिमपूर्ण जीवनानुभवो वाले पूर्वजों ने
ईश्वर पर पूरा विश्वास नहीं किया
सब कुछ ईश्वर और प्रकृति के भरोसे नहीं छोड़ा
हितैषी ईश्वर के साथ - साथ
सबका बुरा चाहने वाले
शैतान की भी परिकल्पना की
प्रकृति के विपरीत बुरे व्यवहार का भी साक्षात्कार किया
जबकि उपजाऊ सुरक्षित पर्यावरण पाकर
आलसी भारतीय पूर्वजों ने
असंदिग्ध चरित्र वाले अनुकूल ईश्वर की
अवधारणा विकसित की
और अपने असावधान चित्त के कारण
बार-बार चले गए ..

हर अवधारणा के विकास का इतिहास होता है
ईश्वर की अवधारणा का भी है
जिसकी मानवीय निर्मित को
साफ़ - साफ पहचाना जा सकता है
जिसका ईश्वर जैसी किसी वास्तविक सत्ता के होने
या बिल्कुल ही न होने से कोई संबंध नहीं

एक अवधारणा के रूप में भारतीय ईश्वर
एक सुरक्षित , लयात्मक और आत्मीय
पर्यावरण के निर्माण और होने की
प्रागैतिहासिक विज्ञप्ति है

नए युग की अवधारणा की दृष्टि से
पहली समस्या ईश्वर को पुनर्परिभाषित करने की है
यद्यपि ईश्वर प्रागैतिहासिक कालीन काव्यात्मक अवधारणा है लेकिन बाद में विकसित सामन्तकालीन व्यवस्था
और पेशेवर पुरोहितवाद ने
उसका आदर्श चेहरा बिगाड़ दिया है
इसीलिए नए सिरे से
उसके निर्दोष स्वरूप की अवधारणा करनी होगी।

ईश्वर वस्तुत: वृहत्तर अस्तित्व का
जीवन और चेतना धर्मी साक्षात्कार है
सहजीवन की जटिलतम पारस्परिकता का
मानवोचित साकार है

इसलिए
सिर्फ नास्तिक होने मात्र से ही
ईश्वर के होने या न होने का प्रश्न समाप्त नहीं हो जाता
इस दुनिया को एक सतत-सक्रिय और विवेकपूर्ण ईश्वर की अनवरत अस्तित्वपर्यंत जरूरत है
चाहे वह अलंघनीय नियमों की
माननीय सत्ता के रूप में ही क्यों न हो.....

इसलिए ईश्वर कहीं नहीं है
यह कहना ही काफी नहीं
यदि ईश्वर एक रिक्ति है
तब तो और भी जरूरी हो जाता है कि
जिनके भी पास ईश्वर होने की सामर्थ्य है
वे आगे आएं
जिनके भी ईश्वर होने की संभावना है
वे आगे आएं

मेरे लिए ईश्वर
स्वत: स्फूर्त परिष्करण की क्षमता वाली
आदर्श एवं पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति के लक्ष्य वाली
व्यवस्था की खोज है

सबसे अंत में मेरे लिए
किसी वास्तविक ईश्वर का होना
प्रकृति में व्याप्त चेतना और समझदारी के अतिरिक्त
भौतिक जगत में जीवन के अस्तित्व की
बीज रूप में प्रकृति की स्मृति में बने रहने की
किसी सृजनात्मक व्यवस्था के
होने की पुष्टिकारी आस्था है