भारतीय धर्म का तंत्र और चरित्र
भारत मे धर्म का तंत्र प्राचीन काल से ही दो समानान्तर संगठनों पर अवलम्बित रहा है-जाति और मठ । इसमे जाति तो स्वयं को सनातनी कहने वाली ब्राह्मण जाति द्वारा संचालित है जबकि मठ व्यवस्था बौद्धों के संघ से होती हुई आश्रम व्यवस्था तक जाती है । लेकिन आश्रम व्यवस्था के भी सर्वाधिक प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी ब्राह्मण जाति ही है । अधिक संभावना यह है कि आश्रमों के संचालन के लिए राजस्व या शुल्क आधारित न होकर भिक्षा और दान की अर्थव्यवस्था का लाभ उठाते हुए बुद्ध ने संघ स्थापित किए ।