मंगलवार, 26 जनवरी 2016

राम स्वरूप चतुर्वेदी प्रसंग

24 जनवरी को लम्बे समय के फेसबुक मित्र डॉ ०महेन्द्र प्रसाद कुशवाहा को आभासी दुनिया से बाहर प्रत्यक्ष देखा .उन्होंने अपने राम स्वरूप चतुर्वेदी प्रेम से मुझे प्रभावित किया है .जब काशी हिंदू विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में पढ़ता था तो कुछ इस तरह की मान्यताएं थी कि विद्या निवास मिश्र की तरह राम स्वरूप चतुर्वेदी भी अज्ञेय के मित्र एवं समर्थक आलोचक हैं .उन दिनों किसी नए बैल की तरह मुझे भी अपनी सींगो पर गर्व था इस लिए मैंने उन्हें बहुत गंभीरता से नहीं लिया था .एक कारण और था कि मैं हिंदी के विभागाध्यक्ष साहित्यकारों को प्रायः फर्जी ,तिकड़मी एवं राजनीतिक विद्वान् मानता था . उन्ही दिनों एक ऐसा भी अनुभव हुआ जिससे मेरी धारणा उनके प्रति एक संकीर्ण और घमंडी साहित्यकार की बनी .छंद पर एक सेमिनार में इलाहबाद से पढ़े किन्तु काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शोध करने वाले मित्र क्षमाशंकर पाण्डेय मुझे अपने आत्म विश्वास पर मुझे सेमिनार हाल में लेते गए .तब तक छंद पर मेरा एक मौलिक लेख विदेश विभाग की पत्रिका गगनांचल में छप चूका था .राम स्वरूप चतुर्वेदी जी नें एक नया चेहरा देखते ही पहले परिचय पूछा फिर दूसरे हिंदी विभाग का जानते ही मित्र क्षमाशंकर पाण्डेय को कहा कि इन्हें बाहर जाने को कहें .मैं मित्र से विदा लेकर बिना अन्यथा लिए वाराणसी लौट आया था .संभवतः यही सोचते हुए कि इन लोगों की हिदी के प्रति प्रतिबद्धता कितनी सीमित और सांप्रदायिक किस्म की है .तब से मेरे भीतर कुछ ऐसा पूर्वाग्रह विकसित हुआ कि मै विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को साहित्य का महंथ मानने लगा .बहुत बाद में अध्यापन करते हुए रामस्वरूप चतुर्वेदी जी का लिख भी पढ़ा तो लगा कि वे जैसे अज्ञेय को समझने के लिए ही बने थे .उनकी भाषा सृजनात्मक और सूक्ष्म विचारशीलता वाली है .तब वे कम्युनिस्टों के लिए अज्ञेय के समर्थक होने के कारण अछूत किस्म के आलोचक थे .अध्यापक होने पर अज्ञेय को पढ़ाने के क्रम में उन्हें भी पढ़ना पढ़ा .मित्र महेंद्र प्रसाद कुशवाहा नें उन्ही पर शोध किया है और उन्ही के ऊपर उनकी सम्पादित पुस्तक "राम स्वरूप चतुर्वेदी : स्मृति और संस्मृति " साहित्य भंडार प्रकाशन ,इलाहबाद से छप कर आई है .अभी अध्ययन चल रहा है .जल्दी ही उस पर लिखूंगा .उन्होंने मुझे भी राम स्वरूप चतुर्वेदी पर पुनर्विचार का आमन्त्रण दिया है ;जिसे मैंने स्वीकार कर लिया है .मेरी स्वयं से भी जिज्ञासा है कि देखूं क्या कुछ और कैसा लिखता हूँ .उनके प्रशंसक निश्चिन्त रहेंगे क्योंकि मैं किसी पूर्वाग्रह के साथ उन पर लिखने नहीं जा रहा .