शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

प्रेम भारद्वाज के लिए


आँखें बाहर का देखने के लिए ही बनी हैं

जो आँखों के भीतर ही बस गया हो 

उसे कैसे देख पाएंगी वे

जीने के लिए ही दिए गए हैं

अपने अस्तित्व में लौटना और जीना चाहता हूँ मैं 
मैं किसी से क्यों लड़ रहा हूँ 
कौन है मेरा दुश्मन 
किसके विरुद्ध जी रहा हूँ मैं 
किसके लिए जी रहा हूँ 
भाग रहा हूँ किसको छोड़कर ....

अपने अस्तित्व में लौटना चाहता हूँ मैं 
जीना चाहता हूँ अपने अस्तित्व को 
जानता हूँ 
अपने अस्तित्व को जीना 
आसान नहीं है 
अपनी उपस्थिति को सबकी उपस्थिति के साथ 
अपने होने को सबके होने के साथ 
जनता हूँ की मेरा होना सिर्फ मेरा ही होना नहीं है 
मैं एक सामूहिक उपस्थिति का हिस्सा हूँ ....

अपने अस्तित्व को जीना चाहता हूँ मैं 
मैं जनता हूँ मेरा अस्तित्व सिर्फ मेरा अस्तित्व ही नहीं है 
मैं असंख्य परमाणुओं की युगलबंदी हूँ
असंख्य आवाजों का समवेत गान हूँ 

अपने अस्तित्व को जीना चाहता हूँ मैं 
मेरा अस्तित्व 
जिसमे मेरा सूरज भी है 
और मेरी धरती भी 
मेरी चिड़ियाएँ ...मेरी गाय...मेरा कुत्ता 
मेरे वन-प्रान्तर....मेरे पहाड़ 
मेरी नदियाँ और मेरे रास्ते हैं 
असंख्य पेड़ों से गुजरते हुए 
उनसे मैं करना चाहता हूँ हाथ हिला-हिला कर संवाद 
कि अपने अस्तित्व को समूचे अंतरिक्ष 
समूचे ब्रह्माण्ड के साथ जीना चाहता हूँ मैं 
लौटना चाहता हूँ 
अपने बंधुओं के पास 

जो मुझे जीने के लिए ही दिए गए हैं