शनिवार, 4 मई 2013

आमंत्रण : - सभ्यता-विमर्श के नए सामूहिक ब्लॉग के लिए


http://sabhyata-wimarsh.blogspot.in

आमंत्रण-स्वयं को जनने के लिए

हम जिस दौर में हैं -सिर्फ यही सोचना जरुरी नहीं है की हम क्या सोच रहे हैं ,बल्कि यह भी कि हम ऐसा क्यों सोच रहे हैं .हमारा अधिकांश सोचना हमारे सामुदायिक आदत का हिस्सा होता है .हम उस आदत को भी बिलकुल अपना बनाकर पेश करते-रहते हैं .ऐसा करते हुए हम स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं .क्योंकि हमें एक समुदाय की सुरक्षा मिली होती है .हम अपने समुदाय-विशेष से आत्मीयता के साथ जुड़े रहते हैं .यह आत्मीयता हमें आश्वस्त करता रहता है .लेकिन इस सुरक्षा का एक विलोम भी है .हम जितना ही किसी समुदाय-विशेष से अभिन्न होते हैं उतना ही किसी समुदाय-विशेष से भिन्न भी होते हैं .यह भिन्नता हमें दूर तो कराती ही है 'दूसरों को डरती भी है .हम दूसरों को अपनी भिन्नता से असहज और दूर करते रहते हैं .ऐसे में हमें अपनी-अपनी आदिमताओं को छोड़कर एक वैश्विक मनुष्य होने के लिए उदारता की खोज करनी होगी .
       दूसरी बात यह है कि हमें जो दुनिया मिली है ,हम अपनी सृजनशीलता से उसे बना सकते है 'उसमें कुछ जोड़ सकते हैं और अपनी विध्वंसात्मक मूर्खताओं से उसे बिगाड़ भी सकते हैं .हमारी सामूहिकता और संगठन बहुत से अविश्वसनीय कामों को कराती -करती रहती है .सामूहिक शक्ति नें अविश्वसनीय निर्माण किए और करे हैं .हमें इस शक्ति को पहचान कर उससे अपने पर्यावरण को बचाना होगा .
     यह ब्लॉग इन्ही चिंताओं को लेकर सृजित किया जा रहा है .अपनी सभ्यता,संस्कृति और पर्यावरण को लेकर यदि आप भी कुछ दूसरों से साझा करने योग्य सोचते हों तो कृपया निम्न ई-मेल पते पर प्रकाशनार्थ प्रेषित करें-
                                 sabhyatawimarsh@gmail.com