बुधवार, 21 अगस्त 2019

याचक

दरअसल वे डकैत थै ।
अलग ढंग के डकैत ।
सभी को सन्तोष,त्याग और दान का पाठ पढा रहे थे ।
क्या गजब का लूट रहे थे
कि सब लुटते हुए भी
मुस्करा रहे थे ।

इस तरह वे सभी का ध्यान
असली जरूरत मंदों से
फर्जी याचकों की ओर
भटका रहे थे
जो स्वाभिमानी भूखे थे
दम तोड़ रहे थे बन्द कमरों मे
और पेशेवर मंगते
सारे शहर मे
गुलछर्रे उड़ा रहे थे ।

देवता

उनका दोष यही था
कि वे देवता हो चुके थे
धरती से ऊपर उठ चुके थे
धरती से सम्बन्ध-विच्छेद हो चुका था उनका
अब वे स्वर्ग से बर्खास्त होने पर ही
धरती पर अपने अवतरण के लिए
सोच सकते थे !
धरती को
और धरती वालों को बचाने के लिए
उनका स्वर्ग से बर्खास्त होना बहुत जरूरी था ।

रामप्रकाश कुशवाहा
21-08-2019