दरअसल वे डकैत थै ।
अलग ढंग के डकैत ।
सभी को सन्तोष,त्याग और दान का पाठ पढा रहे थे ।
क्या गजब का लूट रहे थे
कि सब लुटते हुए भी
मुस्करा रहे थे ।
इस तरह वे सभी का ध्यान
असली जरूरत मंदों से
फर्जी याचकों की ओर
भटका रहे थे
जो स्वाभिमानी भूखे थे
दम तोड़ रहे थे बन्द कमरों मे
और पेशेवर मंगते
सारे शहर मे
गुलछर्रे उड़ा रहे थे ।