डॉ. रामविलास शर्मा की तरह ही डॉ. पी. एन. सिंह भी आधुनिक हिन्दी आलोचना में अंग्रेजी एवं हिन्दी साहित्यिक बोध की मर्मज्ञता पर समान अधिकार रखने वाले विरल सेतु हैं। दोनों ने ही अंग्रेजी साहित्य की प्राध्यापकी के साथ अपने हिन्दी प्रेम के कारण हिन्दी लेखक के रूप में महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। अपने सक्रिय सामाजिक, राजनीतिक सरोकारों के साथ वैश्वीकृत युगबोध के चलते डॉ. पी. एन. सिंह का आलोचकीय व्यक्तित्व एक ईमानदार और सहृदय विमर्शकार के रूप में प्रबुद्ध हिन्दी प्रेमियों के बीच प्रतिष्ठित हुआ है।
हिंदी जगत में नामवर सिंह चक्रवर्ती कीर्तिधर्मा आलोचक होने के साथ-साथ हिंदी विचारशीलता के युग-निर्माता प्रतिमान-पुरुष भी हैं। विचारोत्तेजक होने के साथ-साथ उनका लेखन नई पीढ़ी के लेखकों को प्रतिमानीय गुणवत्ता का एक निर्विवाद संस्कार भी सौंपता है। उनके ऊपर जो विपुल साहित्य उपलब्ध है, उनमें से कुछ गंभीर मूल्यांकन कहे जाने के अधिकारी हैं लेकिन अधिकांश या तो उपकृति के आख्यान हैं अथवा एकपक्षीय प्रशस्ति गायन। अधिकांश में नामवर महत्त्व के ईमानदार एवं वस्तुनिष्ठ बिन्दुओं की भी खोज नहीं की गयी है। उन्हें देखते हुए डॉ. पी. एन. सिंह का नामवर-विमर्श किंचित अभिभूत, शिष्ट, आत्मीय और विनम्र होने के बावजूद ईमानदारी से उनके व्यक्ति और आलोचक के अन्तरंग पहलुओं को समझने और समझाने का तटस्थ प्रयास करता है।
यह पुस्तक डॉ. नामवर सिंह की साहित्यिक-सांस्कृतिक हिन्दी-जगतव्यापी प्रसिद्धि तथा विज्ञापित उपस्थिति पर अनौपचारिक, विमर्शपरक, संस्मरणात्मक एवं विचारपूर्ण व्यक्तित्व का अंकन है। इसके साथ ही यह कृति विभिन्न अवसरों पर अपने व्याख्यानों और निजी अंतरंग बातचीत में की गई नामवर सिंह की महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियों को संरक्षित करती हुई उनकेसाहित्यिक योगदान को समझने की दिशा में महत्वपूर्ण सूत्र उपलब्ध कराती है।
हिंदी जगत में नामवर सिंह चक्रवर्ती कीर्तिधर्मा आलोचक होने के साथ-साथ हिंदी विचारशीलता के युग-निर्माता प्रतिमान-पुरुष भी हैं। विचारोत्तेजक होने के साथ-साथ उनका लेखन नई पीढ़ी के लेखकों को प्रतिमानीय गुणवत्ता का एक निर्विवाद संस्कार भी सौंपता है। उनके ऊपर जो विपुल साहित्य उपलब्ध है, उनमें से कुछ गंभीर मूल्यांकन कहे जाने के अधिकारी हैं लेकिन अधिकांश या तो उपकृति के आख्यान हैं अथवा एकपक्षीय प्रशस्ति गायन। अधिकांश में नामवर महत्त्व के ईमानदार एवं वस्तुनिष्ठ बिन्दुओं की भी खोज नहीं की गयी है। उन्हें देखते हुए डॉ. पी. एन. सिंह का नामवर-विमर्श किंचित अभिभूत, शिष्ट, आत्मीय और विनम्र होने के बावजूद ईमानदारी से उनके व्यक्ति और आलोचक के अन्तरंग पहलुओं को समझने और समझाने का तटस्थ प्रयास करता है।
यह पुस्तक डॉ. नामवर सिंह की साहित्यिक-सांस्कृतिक हिन्दी-जगतव्यापी प्रसिद्धि तथा विज्ञापित उपस्थिति पर अनौपचारिक, विमर्शपरक, संस्मरणात्मक एवं विचारपूर्ण व्यक्तित्व का अंकन है। इसके साथ ही यह कृति विभिन्न अवसरों पर अपने व्याख्यानों और निजी अंतरंग बातचीत में की गई नामवर सिंह की महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियों को संरक्षित करती हुई उनकेसाहित्यिक योगदान को समझने की दिशा में महत्वपूर्ण सूत्र उपलब्ध कराती है।