शनिवार, 31 जनवरी 2015

डॉo मंजुलता लाल :एक काव्य-चित्र

प्राचार्या श्रीमती डॉo मंजुलता लाल : एक काव्य –चित्र

(सेवानिवृत्ति के अवसर पर अपनी प्राचार्या श्रीमती डॉo मंजू लता लाल को एक आत्मीय श्रद्धा -सुमन )

क्योंकि आपने अपनी यात्रा का आरम्भ
रजनी की मोह – निशा में किया था
और देखे थे दिवा के सुनहरे स्वप्न ...
संभवतः इसीलिए जब आप स्वयं सत्ता में आयी
आपने सत्ता को शासन का नहीं
अनुशासन का पर्याय समझा ---    

आपने रजनी सिंह की बंधुआ मजदूर वाली
हिंसक शैली को स्वीकार नहीं किया
बल्कि उन्हें किसी स्नेहिल अभिभावक की तरह
एक परिवार बनाकर साथ-साथ चलना और करना सिखाया
कुछ इसतरह की जैसे आपने
भांति –भांति के यात्रियों से भरे सराय रूपी महाविद्यालय को
अपनी आत्मीयता से घर में बदलना सिखाया ....

इस तरह आपने
मुसाफिरखाना ,ओबरा,चंदौली और गाजीपुर में भी
अत्यंत शानदार और वृहत्तर घर बनाए
और अब वाराणसी के नव-निर्मित
नव्यतम एवं भव्यतम घर में
जाने की लिए
हमसे विदा हो रही हैं ....

आपको कंटीले पौधों का भी
सार्थक उपयोग करना आता है
आपने उनका सुरक्षा के लिए
मजबूत बाड़ बनाने में इश्तेमाल किया ...

आप सबसे पहले अपने कर्त्तव्य –आसन पर
विराजमान होती रहीं
ताकि विलम्ब से आने वालों को शर्मिन्दगी की सजा देकर
या फिर क्षमा के अहसानों के बोध से सुधार जा सके ...

जब आप स्वयं उपस्थित नहीं रह्ती थीं
तब भी आपके महाविद्यालय में बने रहने की अनुभूति बनी रहती थी
आपके द्वारा प्रतिनियुक्त
आँख,कान और दिमाग
पूरी ईमानदारी और मुस्तैदी से गश्त लगते रहते थे
और प्राध्यापकगण भी पूर्ण मनोयोग से पढ़ाते  रहते थे। 

मुझे नहीं मालूम कि
आपने जंगली और बिगडैल घोड़ों को
पालतू बनाकर उन्हें सरपट दौड़ाने की कला कब और कहाँ से सीखी
आपके द्वारा सींचा गया उपवन
पुनः एक नए बसन्त के स्वागत की तैयारी कर रहा है

आप जैसे एक अभिशापित परिसर को
सिर्फ शाप-मुक्त करने आयीं थीं
आपकी नयी यात्रा के बाद भी यह महाविद्यालय
एक परिवार की तरह जीने के
स्वस्थ संस्कार और आदतों को जीता हुआ
आपको श्रद्धा-सुमन प्रेषित करता रहेगा ...
जो महाविद्यालय  कभी सिर्फ अपने रजनी-काल के लिए
जाना जाता था
वह अब आपका भी कीर्ति –स्थल और स्मारक है .



राम प्रकाश कुशवाहा

३१.०१.२०१५