सोमवार, 28 दिसंबर 2015

मलयज की दृष्टि मे रामचंद्र शुक्ल


मलयज की  रामचंद्र शुक्ल  से सम्बन्धित आलोचना की मुख्य समझ उस इतिहाबोध से निर्मित होती है जो पराधीन भारत में बहुआयामी  जीवन संघर्ष की चुनौतियों के पक्ष में व्यक्तिवाद और कलावाद  का  बहिष्कार करती है। स्पष्ट है कि रामचंद्र शुक्ल साहित्य को इतिहास निर्माण यानि साहित्य को राजनीतिक भूमिका में देखना चाहते थे। यह हिन्दी साहित्य के प्रथम व्यवस्थित इतिहासकार का ऐसा इतिहासबोध था इतिहास के लम्बे निरीक्षण से पैदा हुआ था। यह वह समय था जब सामूहिकता अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी थी। औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के दौर मे भाारत की मूलत सामाजिक सांस्कृतिक सभ्यता हथियारबन्द राजनीतिक संगठनो द्वारा रौद दी गयी थी। ऐसे मे व्यक्ति स्तरीय मुक्ति का आदर्श कालातीत हो गया था। शुक्ल जी की लोक चिन्ता को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। मलयज का ध्ध्यान शुक्ल जी की इस लोकचिन्ता की ओर तब गया जब बाजार के अर्थतन्त्र से गठबंधन कर भारत में कलावाद फिर वापस लौट आया था। बाज़ार व्यक्तिवाद को बढ़ावा दे रहा था । शुक्ल जी के समय संघर्ष की दृष्टि से व्यक्ति अप्रासंगिक हो गया था ।