शुक्रवार, 17 मार्च 2017

कहना तो पड़ेगा ...

जब सभी लोग एक ही दिशा में चलने लगते हैं
तो मैं अनहोनी की आशंका से घिर उठता हूँ
मुझे लगता है भगदड़ में मरेंगे सब
शास्त्रों में तो एक पिता को अपनी संतान के साथ भी
नाव पर बैठने का निषेध किया गया है
यहाँ तो चल रहा है पूरा का पूरा कुनबा ही
एक ही दिशा में और एक ही नाव पर सवार
और नदी की लहरें हैं कि किसी मगरमच्छ की तरह
घात लगाकर घूमती जा रही है .....

(भीड़ भीरु हूँ मैं
अभी मिलूंगा मैं सिर्फ अपने पास
स्वयं को दुहराने और बाहर निकालने का मेरा  कोई इरादा नहीं है)

कविता

'क ' से कथन और ''वि ' से विशेष का अर्थ लेते हुए मैं विशेष या विशिष्ट ढंग से कथन करने वाले को कवि तथा विशिष्ट ढंग से कथित को काव्य मानना चाहूँगा |

होली

 o इधर कुछ ऐसे पोस्ट देखने को मिले हैं कि जिसमें होलिका के एक स्त्री -प्रह्लाद की बुआ,को जलाने के आधार पर होली त्यौहार का ही विरोध किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में मुझे जो कहना है वह कुछ इस प्रकार है कि हिन्दी में तो इ और आ स्वर की उपस्थिति मात्र से शब्द को स्त्री मान लिया जाता है।संस्कृत में पुलिंग,स्त्रीलिंग के साथ नपुंसक लिंग भी मिलता है। इस तथ्य को देखते हुए यह सोचना ठीक नहीं होगा कि कोई स्त्री वाची शब्द वास्तविक स्त्री का भी द्योतक है। हिन्दी और संस्कृत में होलिका और होली शब्द भी अन्त में आ और ई होने के कारण स्त्रीलिंग है। इसी लिए पौराणिक कथा में भी होलिका को स्त्री माना गया है। इस तथ्य को देखते हुए कि संस्कृत में हवन,स्वाहा और हवि शब्द भी मिलता है।अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए ईधन सामग्री डालने के अर्थ में। इस दृष्टि से होलिका शब्द की व्युत्पत्ति हविका ,हविकावली, हविपत्तिका आदि शब्दों से हवलिका होते संभावित है ।'
           यह आदिम काल से चला आने वाला लोकपर्व है। यह साधारण किसान अनुभव है कि घास और झाड़ियों में आग लगाने पर हरी पत्तियाँ बची रह जाती हैं।ये हरी पत्तियां ही प्रह्लाद हैं और पुरानी पत्तियों का जलना ही नयी पत्तियों की बुआ होलिका का जलना है। प्रह्लाद का शब्दार्थ भी प्र -आह्लाद से श्रेष्ठ आनंद या उल्लास हुआ। इस व्युत्पत्ति के अनुसार  होलिका को जो भी हो चुका है यानि पतझड़ में गिरे पुराने पत्तों के जलाने एवं प्रह्लाद के बचने को वसन्त के नए पत्तों या पल्लवों के आगमन से सम्बंधित माना जा सकता है ।
            इस लोक पर्व को पुरोहिती पाठ से न देखने पर ही इसका महत्व और रहस्य खुलता है। हिरण्यकश्यप का वध भी हिरण्य यानि सोने के समान पकी हुई फसल का काटना है। नरसिंह के रूपक में किसान के सिंह केसमान पराक्रम का मानवीकरण है। झस मिथकीय कथा को रूपक के रूप में देखने से ही इसका काव्यात्मक निहितार्थ खुलता है।जैसे फसल को काटने के लिए होने हिंसात्मक कार्य की तुलना सिंह के शिकार से करते हुए उसे नरसिंह के रूप में देखा गया है।होली समबन्धी मिथक में आए सभी नाम इतने सुस्पष्ट हैं कि कथा की कालपनिकता पर विवाद न करते हुए उसके प्रतीकार्थ के महत्व की ओर ध्यान देना चाहिए।
दरअसल होली एक बहुत पुराने समय से चला आ रहा ॠतु पर्व है । होलिका दहन में हो शब्द भाषा वैज्ञानिक नियमानुसार भव शब्द से भी अपभ्रंश काल में निकला हो सकता है ।  इस रोचक भारतीय किसान लोकपर्व को बेवजह बदनाम करना ठीक नही है। इस ॠतुपर्व होली की आप सभी मित्रों को बधाई। निरर्थक अतीत को जलाकर नव्यतम और श्रेष्ठतम सुख प्राप्त करने के लिए आप सभी को शुभकामनाएँ
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