सफेद घोड़े पर कल्कि
जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
बुधवार, 30 अप्रैल 2025
सफेद घोड़े पर कल्कि
ईश्वर का मिलना
ईश्वर का मिलना
ईश्वर को पाने के लिए
घर छोड़ कर भागना जरुरी था क्या !
या ईश्वर का मिलना सिर्फ उनके लिए था
जिनका घर और बस्ती के भीतर
मन नहीं लगता ....
ईश्वर को बताया गया था
संसारिकता की सरहद के पार
जिसे पाने के लिए कष्टों कि उफनती हुई नदी में
कूद पड़ना था
अनवरत तैरते हुए
डूबने से बच निकलना था
कैसे भी हो
तमाम बाधाओं को पार करते हुए
उस तक पहुंचना था ....
जैसे ईश्वर को जिंदगी में कोई दिलचस्पी नहों थी
बहती हुई जिंदगी कि बस्ती को लावारिस छोड़ कर
दुनिया के घोषित परिचित सच को छोड़कर
एक अनजाने ईश्वर की खोज में भाग चलना था
अंत में दौड़ ख़त्म हो जाने के बाद
दौड़ के सहयोगी व्यवस्थापकों को ही विजेता घोषित करते हुए
दबे स्वर में एक ईमानदार असफल आयोजक नें यह बताया -
ईश्वर को जिंदगी के भीतर ही ढूँढना था
ईश्वर को तुम सब बहुत पीछे छोड़ आए हो ......
@रामप्रकाश कुशवाहा
15\01\2024
एक योगी-संन्यासी का आत्मसत्य!
एक योगी-संन्यासी का आत्मसत्य!
मेरे हठधर्मी विवेक की जड़ता को समझो
मैं एक सुचिंतित - सुनियोजित पाठ की तरह हूं
भांति-भांति के परस्पर विरोधी और प्रतिस्पर्धी
उलझनों के बीच
जोखिमपूर्ण अवसरों और चुनौतीपूर्ण बाधाओं के बीच
बहुत मुश्किल से बनाया गया एक कंटकाकीर्ण पथ जैसा हूं!
समय के बहाव और तेज धार की कटान से भयभीत
अपने होने के लिए जूझता हुआ एक हठीला घर जैसा हूं
मैं एक आत्मार्पित मूर्ख हूं
सांसारिक दृष्टि में
जिसने बसाए जाने के बावजूद
सुखपूर्वक बसने के तमाम अवसरों से इन्कार किया
अपना बार -बार उजड़ना स्वीकार किया
स्वैच्छिक निर्वासन जिया
छोड़ अपना घर स्वयं को बार-बार बेघर किया
कुछ इस तरह कि मेरी उपलब्धियां
पाते जाने में नहीं अपितु छोड़ते और गंवाते जाने के रूप में ही
गणनीय हैं !
कुल मिलाकर यह कहूं कि मैं एक अभिशापित धूर्त हूं
जिसने दूसरों को सुखी रखनें की नाकाम कोशिश में
स्वयं को ही बार -बार छला है
मैं जब बचकर भाग सकता था
जानबूझकर ठहरना चुना और अभागा हुआ
अपनी ही संवेदनशीलता कीअंतर्दाही आग में जलते हुए
खुश रहने के लिए जीते-जी अपना जिंदा मरना चुना!
००
@रामप्रकाश कुशवाहा
08/02/2025
मन की मुक्ति
मन की मुक्ति
मन हमारे चेतन अस्तित्व का खलनायक नहीं
उसके संचालन और निर्देशन का कर्ता नायक हैं
इसीलिए मन को मारने की नहीं
सिर्फ सुधारने और संवारने की जरूरत है
मन हमारे अस्तित्व और हमारी चेतना का विकार
हमारी आत्मा का बंधन नहीं है
हमारी अनुभूतियों, अनुभवों और इच्छाओं से बना
स्मृतियों और बोध का संग्रहालय हमारी बुद्धि
हमारे ज्ञान का प्राथमिक उपभोक्ता हैं
एक अपरिहार्य साफ्टवेयर है
जिसे चुन-चुन कर दुनिया की सारी अच्छाइयों से
हमें समृद्ध करना है
मन से भागना नहीं है
मन हमारी ही चेतना और परिवेश की संतान हैं
मन को पुकारना है
मन को दुलारना है
मन से खेलना है
मन से कसरतें करवानी है
मन को मजबूत करना है
मन को सारे सद्गुणों से भर देना है
मस्तिष्क के आंतरिक अंतरिक्ष में
मन की सारी सूंदर और रोमांचक
भविष्यमुखी कल्पनाओं को
मुक्त और जिज्ञासु पक्षियों की तरह उड़ने देना है
हमारा मन हमारी आत्मा का सगा है
हमारा स्वस्थ मन हमारी आत्मा का
किसी भी प्रकार से दुश्मन नहीं है
विष्णु या कृष्ण जैसे किसी पर -उपकारी चरित्र में
कभी भी अपने मन को नहीं मारा
बल्कि अपने बलशाली -धैर्यवान और विवेक -संयमित मन से
अपने जमाने के दुःखियों और हारते लोगों को उबारा !
मन को सिर्फ सकारात्मक और सहयोगी बनाना है
उसे संपूर्ण सृष्टि का शुभचिंतक योगी बनाना है
मन बंधन नहीं है
सारी दुनिया को बांधने वाला है
बिगड़े हुओं को सुधारने वाला है
मन को मारना या बांधना नहीं
सिर्फ साधना है...
मन पर अपनी चेतना का नियंत्रण बनाए रखना है
अपने मन को किसी खिलंदड़े शरारती शिशु की तरह
दुर्घटनाओं से बचाने के लिए देखते रहना है
मन को जानते और उसका सुनते रहना है
अकारण और निरपराध मन को मारना आत्महिंसा है
मनुष्य यानी कि एक मन वाले प्राणी के मन को मार देना
एक मनुष्य को उसके मन के सृजनाधिकार को मार देना है
मन को निरस्त कर देना
एक मन से बधिया -वंचित जीवित का
धरती पर निरूद्देश्य विचरना है
मन से मरे एक जिंदा तन का
अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा में
किसी मृतक के समान समय में बीतना है !
11/01/2025
@रामप्रकाश कुशवाहा
एक योगी-संन्यासी का आत्मसत्य !
एक योगी-संन्यासी का आत्मसत्य !
मेरे हठधर्मी विवेक की जड़ता को समझो
मैं एक सुचिंतित - सुनियोजित पाठ की तरह हूं
भांति-भांति के परस्पर विरोधी और प्रतिस्पर्धी
उलझनों के बीच
जोखिमपूर्ण अवसरों और चुनौतीपूर्ण बाधाओं के बीच
बहुत मुश्किल से बनाया गया एक कंटकाकीर्ण पथ जैसा हूं!
समय के बहाव और तेज धार की कटान से भयभीत
अपने होने के लिए जूझता हुआ एक हठीला घर जैसा हूं
मैं एक आत्मार्पित मूर्ख हूं
सांसारिक दृष्टि में
जिसने बसाए जाने के बावजूद
सुखपूर्वक बसने के तमाम अवसरों से इन्कार किया
अपना बार -बार उजड़ना स्वीकार किया
स्वैच्छिक निर्वासन जिया
छोड़ अपना घर स्वयं को बार-बार बेघर किया
कुछ इस तरह कि मेरी उपलब्धियां
पाते जाने में नहीं अपितु छोड़ते और गंवाते जाने के रूप में ही
गणनीय हैं !
कुल मिलाकर यह कहूं कि मैं एक अभिशापित धूर्त हूं
जिसने दूसरों को सुखी रखनें की नाकाम कोशिश में
स्वयं को ही बार -बार छला है
मैं जब बचकर भाग सकता था
जानबूझकर ठहरना चुना और अभागा हुआ
अपनी ही संवेदनशीलता कीअंतर्दाही आग में जलते हुए
खुश रहने के लिए जीते-जी अपना जिंदा मरना चुना!
००
@रामप्रकाश कुशवाहा
08/02/2025
ईश्वर का दिखना
ईश्वर का दिखना
जहां -जहां
जब -जब ईश्वर दिखना था
वहां-वहां जानबूझकर चुप लगा जाते थे
कैसे तों भरमाते थे
ईश्वर के नाम पर इथर -उधर दौड़ाते थे
जहां जिधर जब उसे दिख जाना था
वहां उधर तब उस पर पर्दा देते थे
कुछ का कुछ बता देते थे
छिपा देते थे
भटका देते थे
उन्हें मालूम था कि कण-कण में है ईश्वर
फिर भी सबने मिलकर धूल की निंदा की
धूल को भूल जाने को कहा
कुछ ऐसे कि ईश्वर पर ही धूल डाल दिया
ईश्वर को ही छिपा दिया धूल में
उन्हें अच्छी तरह मालूम था
कि हर पत्थर में ईश्वर है
लेकिन उन्होंने सिर्फ एक पत्थर उठाया
और उस पर रंग पोत कर
ऊंची दीवारों वाले कमरे में बंद कर दिया
ताकि अपने कमर में लटकती हुई चाबी से
ईश्वर का दिखना और छिपना नियंत्रित कर सकें
उन्हें मालूम था
कि सारा ब्रह्माण्ड ही ईश्वर की अभिव्यक्ति है
ईश्वर का प्राकट्य है
यानी कि मूर्ति
उन्होंने पत्थरों को घायल करते हुए
एक नई मूर्ति ईजाद की
और हर जगह मूर्तित
हर पत्थर में झांकते हुए ईश्वर का दिखना बंद करा दिया
उन्हें मालूम था कि कुत्ता-बिल्ली -बंदर,
सिंह -सर्प -भालू-हाथी और मगर
सब एक ही तरह धरती पर जन्म लेते हुए
जैविक रूप से अमर बने हुए हैं इस धरती पर
उन्होंने अमरता कि नयी परिभाषा गढ़ी
और मनुष्य जाति को उल्टा खड़ा कर दिया
धरती की ओर प्राय:झुकी रहनें वाली आंखों को
धरती से विमुख कर आसमान दिखा दिया
ऐसा सब औरों की तरह ही
अपने "पापी पेट " के लिए किया था
यद्यपि उन्हें मालूम था कि
शरीर का उत्तम स्वास्थ्य धर्म का साधन है
उन्हें यह भी मालूम था कि
ज़ों भी पेट में जाता है वहीं जीवन का मर्म है
अन्न ही धन है से भी तक की यात्रा करते हुए
उन्होंने अपने मुहावरों में पेड़ को ही पापी कह दिया
इसका भी हमें शर्म है।
17/01/2025
@रामप्रकाश कुशवाहा
सच का ईश्वर
सच का ईश्वर
इतिहास और आख्यान में
यह पता लगाया जा सकना मुश्किल ही है
कि किस समय किस गधे ,घोड़े या मनुष्य की पीठ पर बैठकर
निकल रही हो चुकी होती है उसकी ऐश्वर्यमयी शोभायात्रा!
फिर भी अनुमान लगाया! जा सकता है....
महाभारत के आख्यान में वह मुझे
कभी कंस,कभी कालयवन तो कभी
दुर्योधन के भीतर यैठकर
कृष्ण को ईश्वर बनने के लिए
उकसाता-ललकारता दिखाई देता है
जबकि रामायण में उसकी ओर से
सारे ऐश्वर्य का नैसर्गिक समर्थन और पक्षपात
जैसे सिर्फ रावण के लिए ही था....
राम और कृष्ण तो रावण और दुर्योधन से प्राप्त
ईश्वरीय घातों और प्रतिघातों का प्रत्युत्तर देते हुए ही
प्रतिरोध की ईश्वरता पा गए....
राम और कृष्ण को यह पता था
कि हर घटना के सूत्रधार के आस-पास ही
अपने छिपे उद्देश्यों के साथ
क्रिया-प्रतिक्रिया,घटना-दुर्
हुआ करता है नियति का ईश्वर
जिसे ही वे दैव की इच्छा
यानी विधाता का विधान समझते रहे....
लोक को भी कोई भ्रम न रहे
आश्वस्त और सुखी दिखते क्षणों में ही
बुरी तरह अपमानित कर
दोनों ही धरती के रंगमंच से
छिपी युक्तियों द्वारा वापस बुला लिए गए
पुरूषार्थ और प्रतिरोध से अर्जित
अपनें लोकविश्रुत ऐश्वर्य से निश्क्रमित
और बावजूद.....
अनुचर -आज्ञाकारी बेचारा गांधी भी तो
भ्रम में पड़े भक्त की तरह मुफ्त में मारा गया
जबकि प्रचार के पीछे और परदे के छिपाव से अलग
ईश्वर मानवता की आजादी के लिए नहीं बल्कि
दूरगामी विभाजन की योजना के अन्तर्गत
जिन्ना और गोड़से को परिमार्जित करने की योजना में
लगा हुआ था
इसतरह जब भी मैं
ईश्वरीय समझे जाने वाले
आख्यानों के बारे में सोचता हूँ
मैं यह देखकर आश्चर्य चकित रह जाता हूँ कि
प्रचलित विज्ञप्तियों से अलग
कई बार समय का ईश्वर
सुख के उत्सव में मंथरा जैसे
किसी अदनें से निर्णायक चरित्र में
अत्यंत गम्भीर चतुराई के साथ
छिपा बैठा होता है...
अनेक बार कड़े पहरे और परदों के बीच
यत्न से छुपाई गयी
उन निरीह बंदी सुंदरियों में भी
जिनके मुस्कान से विचलित होकर
या जिनके आंसुओ में डूबकर मर जाती थीं बहादुर सेनाएं ..
सम्मानित प्रवर्तक नें तो उसपर पूरा विश्वास किया था
लेकिन उसने प्रवर्तक को कभी नहीं बताया कि
उसका असली मकसद ऐसे हत्यारों की फौज तैयार करना है
जिसमें सभी आत्मरक्षा के नाम पर
एक-दूसरे की हत्याएं और युद्ध करेंगे
उसनें प्रवर्तक को यह कभी नहीं बताया कि
उसकी योजना में उसके ही वंशजों की बलि चढाई जानी है ।
जीवन की नई-नई चुनौतियों का सामना करने के लिए
संस्थागत ईश्वर प्रतिरोध की स्मृति तो देता है
लेकिन अपने पिछड़ेपन को स्वीकारने के साथ
एक न॓ए अद्यतन नेतृत्व की प्रतीक्षा में ...
05/05/2024
सब स्वयंभू थे
कोई भी किसी दूसरे की ओर से
अधिकृत नहीं था
इसतरह
कुछ भी नैतिक नहीं था
सारे अधिकार ताकत से प्राप्त हुए थे
जो सबसे निरंकुश और मुक्त था
जो सबसे अधिक स्वच्छंद और
अपने निर्णयों और कार्यों के लिए
किसी के प्रति भी जवाबदेह नही था
ईश्वर की ओर से था
जिसके जबड़ों में मृत्यु थी
वह था ईश्वर का स्वयंभू
विषदन्तों वाले भी
और चींथते नखों वाले बाघ
आहार-श्रृंखला में
मुर्गियाॅ भी चीटियों और कीटों के लिए
मृत्यु प्रदाता प्रभु थीं
और आदमी मुर्गों और मुर्गियों के लिए
बेबस बकरियों का तो जैसे जन्म ही
प्रभु को प्यारे हो जाने के लिए हुआ था
दुनिया के सारे अपराधिक दुष्ट
और ईश्वर होने का अभिनय करते हुए
त्रासद और हिंसक इतिहास रचने वाले
हथियारबंद संगठनों के निर्णायक और विधाता
सारे अभिशापक प्रधान भी !
#ईश्वरतंत्त्र
रामप्रकाश कुशवाहा
08/01/2023
होना,सभी के साथ और सृष्टि-बीज !
होना,सभी के साथ होना और सृष्टि-बीज !
हारना
हारना
भविष्य-दर्शन
भविष्य-दर्शन
ईश्वर-समाज
ईश्वर-समाज
समाज ईश्वर की तरह और
ईश्वर समाज की तरह व्यावहार करता है
कभी ईश्वर के नाम पर समाज गल्तियां करता है
कभी समाज की गल्तियों के लिए
ईश्वर बदनाम होता है
उसके नाम पर हिलता है जो हर पत्ता
हिला हर पत्ता उसी के नाम होता है
दुनिया की हर सत्ता, उसका शासन और संविधान
ईश्वर के होने की नकल है
निरंकुश सत्ता में ईश्वर होने की अक्ल चाहे न हो
उसके अधिकारों की निरंंकुुश और आपराधिक मुद्राएं
सत्ता के ईश्वर होने का स्वांग और दखल है
इसलिए उसकी सम्प्रभुता कोई बीता हुआ कल नहीं
अभी-अभी गुजरता हुआ आज और
आने वाला कल है ....
इस तरह दुनिया के सारे नास्तिक झूठे हैं
क्योंकि दुनिया की सारी सरकारें
ईश्वर के राज्य का छद्म पुरावशेष हैं
वे सिर्फ कहनें के लिए देश हैं
वे स्वयं को धर्म निरपेक्ष कहें या नास्तिक
उनके सारे मुखौटे,मुद्राएं,क्रियाएं और व्यवहार
सर्वशक्तिमान ईश्वर का ही अनुकरण और वेश है
क्योंकि ईश्वर अपनी अवधारणा में किसी के प्रति भी
जवाबदेह नहीं है
इसीलिए दुनिया की सारी सत्ताएं
भ्रष्ट,गैरजिम्मेदार और अपने हत्यारेपन का लुत्फ उठाती है
जैसाकि चीन ,कोरिया,रूस,इजराइल और ईरान में है ....
26/08/2024
अकेलेपन की साधना और सामूहिकता
अकेले पन और अलगाव की साधना
अकेले होने और अलगाव की
एकाकी साधना उचित नहीं है
फिर भी भीड़ के भगदड़ में
कभी भी बदल जाने की आशंकाओं को देखते हुए
उसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए
जागना और बचकर भागना जरूरी है
रोमांच के बावजूद
उचित दूरी बनाए रखना
सुरक्षित बचे रहने की मजबूरी है !
सबसे अच्छा यह है कि
विवेक की स्वतंत्रता के साथ
अच्छी क्रियाओं और कार्यों में जीवन बीते
पिछली पीढ़ियों से बहुत कुछ लिया और पाया है तो
अगली पीढ़ियों को भी बहुत कुछ देने और बांटने से न चूकें !
सामूहिकता में विलय और विसर्जन
जीवन का लक्ष्य हो
लेकिन वह भेड़ियाधसान
यानी विवेक रहित भीड़ की अंधी अनुगामिता के रूप में न हो
तो ही अच्छा !
18/12/2024
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अभिनव कदम - अंक २८ संपादक -जय प्रकाश धूमकेतु में प्रकाशित हिन्दी कविता में किसान-जीवन...
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संवेद 54 जुलार्इ 2012 सम्पादक-किशन कालजयी .issn 2231.3885 Samved आज के समाजशास्त्रीय आलोचना के दौर में आत्मकथा की विधा आलोचकों...
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पाखी के ज्ञानरंजन अंक सितम्बर 2012 में प्रकाशित ज्ञानरंजन की अधिकांश कहानियों के पाठकीय अनुभव की तुलना शाम को बाजार या पिफर किसी मे...