जीवन का रास्ता चिन्तन का है । चिन्तन जीवन की आग है तो विचार उसका प्रकाश । चिन्तन का प्रमुख सूत्र ही यह है कि या तो सभी मूर्ख हैं या धूर्त या फिर गलत । नवीन के सृजन और ज्ञान के पुन:परीक्षण के लिए यही दृष्टि आवश्यक है और जीवन का गोपनीय रहस्य । The Way of life is the way of thinking.Thinking is the fire of life And thought is the light of the life. All are fool or cheater or all are wrong.To create new and For rechecking of knowledge...It is the view of thinking and secret of life.
सोमवार, 21 दिसंबर 2020
केदार नाथ सिंह की काव्य-यात्रा
गुरुवार, 24 सितंबर 2020
विचारशीलता और विचारधारा
विचारशीलता और विचारधारा
मेरी दृष्टि में समय,सूचना और सभ्यता के विकास के सापेक्ष होने के कारण कोई भी विचार या विचारधारा पूर्णता को प्राप्त रुप में स्थिर हो ही नहीं सकती । इसी कारण मेरे लिए विचारशीलता, विचार करने की शक्ति और उसका कौशल मानव सभ्यता के विकास की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है । यह विचारधाराओं के पिछले इतिहास और अनुभव से प्राप्त सीख है और यदि वादी होना बहुत जरुरी हो तो मैं संभावना और विचारवादी ही होना चाहूँगा । वैसे भी मैं दर्शन की पृष्ठभूमि से नहीं बल्कि मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि से आया हूँ । मेरे लिये तथ्यों की प्रतीक्षा और उचित सम्मान के बावजूद निष्कर्ष (अन्तिम) अधिक मायने नहीं रखते बल्कि सोचना ही अधिक महत्वपूर्ण है । मुझे बहुवैकल्पिक सृजनधर्मी होने से अनेकांतवाद प्रिय है । मैं सिर्फ समझदार बनने- बनाने के लिये ही लिखना और सोचना पसंद करता हूं । शिक्षक एव्ं विज्ञान की पृष्ठभूमि से आने के कारण हानि और लाभ तथा गुण और दोष दोनो पर समान ध्यान देता हुँ। क्योंकि हर नयी सूचना ही हमारे-आपके निष्कर्ष बदल सकती है-इसके लिये मैं तैयार रहता हुँ । अधिकांश लोग उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ही जल्दी से जल्दी इसलिये निष्कर्ष पाना चाहते हैं क्योंकि वे विचार की थकाने वाली मानसिक प्रक्रिया से जल्दी से जल्दी बाहर निकलकर आराम पाना या सुखी होना चाहते हैं । इसे मैं आलस्य,आराम पाने की जड़ता के रुप में देखता हूँ । यही जड़ता यथास्थिति और रुढ़िवाद को जन्म देती है ।
क्योंकि अधिकांश संगठन और उनके नेतृत्व की पद्धति और तंंत्र आदिम हैं और वे समावेशी वैचारिकता का सम्मान करते नहीं दिखते इसीलिए मैं अभी तक उपलब्ध राजनीतिक दलों की शक की नजर से देखने के लिये विवश हुँ । मैं अभी भी किसी आदर्श-आगामी की तलाश और प्रतीक्षा में हुँ और आपको मेरी प्रतिबद्धता को लेकर अनावश्यक शिकयतपूर्ण नहीं होना चाहिए ।यद्यपि विचारधाराओं की प्रगतिशील और स्वस्थ परम्परा का पुनर्शोधंन करते रहने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन संशय एव्ं द्वंद्व की स्थिति में वैज्ञानिक आधुनिकता को ही निर्णायक होना चाहिए । उसमें भटकाव का जोखिम हो तब भी क्योंकि भविष्य के लिये भी सही होने की परीक्षा उसकी ही की जानी है ।
जहाँ तक साहित्य का प्रश्न है कला होने के साथ वह भी लोकशिक्षा का एक सशक्त माध्यम भी है । उसका उद्देश्य सिर्फ पूर्वनिर्धारित ज्ञान देने तक ही सीमित कभी नहीं हो सकता । यदि वह ज्ञान की खोज के लिये उचित-अनुचित की परख, आवश्यक प्रशिक्षण और सामर्थ्य भी नही देता ।
शनिवार, 11 जुलाई 2020
अंतरिक्ष की सीमा
रविवार, 7 जून 2020
यान्त्रिक भौतिकवाद
फुकुयामा
माता सीता का भूमि-प्रवेश प्रसंग
बुधवार, 6 मई 2020
हिन्दू धर्म
गुरुवार, 30 अप्रैल 2020
एकलव्य प्रसंग
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
साम्प्रदायिक घृणा का सांस्कृतिक अचेतन
इस प्रश्न का ईमानदार उत्तर आप तभी पा सकते हैं, जब धर्मों के पहले की मानवजाति की आप कल्पना कर सकें ।
संयोग से दोनों धर्मों के नेतृत्व में पुरोहितवंशी पृष्ठभूमि और मानसिकता छिपी है । मुहम्मद साहब स्वयं पुरोहित घराने से थे और उन्होंने इस्लाम के प्रवर्तन के समय जिन मूर्तियों को ध्वस्त किया था ,उनका परिवार ही उस मन्दिर का पुरोहित था । दूसरी ओर हिन्दू धर्म का नेतृत्व ब्राह्मण नाम की पुरोहित जाति करती है । पुरोहित व्यवस्था हर इन्सान और उसकी रूह को ईश्वर तक सीधे पहुंचने के अधिकार को प्रतिबन्धित करती है । इस्लाम में पुरोहित मानसिकता की अभिव्यक्ति-'मुहम्मद ही उसके रसूल हैं ' कथन से होती है । हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक ब्राह्मणों के नियन्त्रण में है -ईश्वर तो है ही । इसका निहितार्थ यह हुआ कि मरने के बाद भी मुहम्मद साहब के बिना अल्लाह से कोई भी मुसलमान नहीं मिल सकता तथा कोई भी हिन्दू ब्राह्मणों के बिना ईश्वर तक पहुंचने का अधिकारी नही है । ये दोनो ही सामान्य मनुष्यों को दोयम दर्जे का सिद्ध करते हैं । मनुष्य को दो वर्गों मे विभाजित करते हैं -ईश्वर के प्रिय तथा ईश्वर से दूर के मनुष्यों में । स्पष्ट है कि परम्परागत धर्म अपनी अवधारणा मे ही भेदभावपूर्ण हैं ।
अब हम दोनों धर्मों के अनुयायियों मे व्याप्त परस्पर घृणा के मनोविज्ञान पर विचार करें । दोनों धर्मों का उद्भव स्थल प्राचीन काल की साधनहीनता को देखते हुए पर्याप्त दूर ही कहा जाएगा । भारत से बाहर मूर्ति पूजा वाला धर्म बुत यानी बुद्ध की मूर्तियों के रूप मे गया था । बुद्ध के लगभग पाॅच सौ वर्षों बाद ईसा मसीह और लगभग एक हजार वर्षों बाद मुहम्मद साहब आते हैं । सभी जानते हैं कि बौद्ध धर्म एक अनीश्वरवादी धर्म है । जीवन को दिव्य बनाने वाले बुद्ध के दर्शन को उनके जाने के हजार वर्षों बाद आयी तमाम विकृतियो के बाद सही-सही समझना संभव भी नहीं रहा होगा । हिन्दू धर्म के अन्य देवताओं की मूर्तियां जैसा कि इस्लाम के अनुयायी समझते हैं -ईश्वर की मूर्तियां नहीं होतीं । दिव्यता लोकोत्तर विशिष्टता कि पर्यायवाची होता है । हिन्दू धर्म के प्रायः सभी देवता अपना विशिष्ट चरित्र और आख्यान रखते हैं । सभी के चरित्र में कोई न कोई समाजोपयोगी आदर्श या प्रेरणादायी विशिष्टता होती है । अधिकांश देवता किसी न किसी पौराणिक आख्यान के चरित्र हैं । अवतारवाद को ही देखें तो वे ईश्वर के अंश एवं प्रतिनिधि ही माने जाते हैं-स्वयं ईश्वर नहीं । हिन्दू धर्म अनीश्वरवादी नहीं है । इस्लाम की काफिर वाली अवधारणा अनीश्वरवादी बौद्ध धर्म को लेकर बनी थी । हिन्दू धर्म मे वैष्णव मत पूरी तरह परोपकार का प्रचार करता है । हनुमान कि चरित्र भी प्रेरक और परोपकारी है । कहने का तात्पर्य यह है कि मुहम्मद साहब ने जिन्हें भी काफिर समझा होगा वह अनीश्वरवादी बौद्ध धर्म का हजार वर्षों बाद का विकृत स्वरूप रहा होगा । मध्यकाल मे जब इस्लाम के अनुयायियों का भारत पर आक्रमण हुआ तो उन्होने मूर्तिपूजा को बुतपरस्ती और सभी मूर्तिपूजको को काफिर मान लिया । यह वह घृणा है जो इस्लाम के अनुयायियों में हिन्दू धर्म के प्रति मिलती हैं । इस्लाम प्रेरित इस पूर्वाग्रह ने मूर्ति निर्माण जैसी महत्वपूर्ण सृजनात्मक कला को अभिशप्त कर दिया । मुसलमान मूर्ति निर्माण को ईश्वर का अपमान समझते हैं । उन्हें अपने अल्लाह को समझाना चाहिए कि जैसे अल्लाह या कुदरत ने सारी दुनिया बनायी वैसे ही यदि उसका बनाया इन्सान पत्थरों को तराश कर प्रतिमाएं गढता है तो वह भी तो अल्लाह द्वारा कुछ रचने की कला का अनुसरण या अनुकरण ही कर रहा है -फिर यह अपराध कैसे हुआ ?
मुसलमानों के प्रति हिन्दुओं मे जो घृणा मिलती है -उसका एक कारण उनमें प्रचलित बलि- प्रथा और मांसाहार भी है । उल्लेखनीय है कि हिन्दुओं में बहुत सी जातियाँ मांसाहार नहीं करतीं । इनमें जैन , ब्राह्मण तथा बहुत सी अन्य किसान जातियां शामिल हैं । हमें ध्यान रखना चाहिए कि अरब और उसके निकटवर्ती अफ्रीका महाद्वीप मे शिकार आधारित जीवनयापन भी है । इस्लाम के अनुयायियों को सूअर को छोड़कर सभी जीवों का शिकार करने की छूट है जबकि कृषि प्रधान देश भारत में जन्मा सनातन धर्म कृषि मे सहायक बहुत से जीव-जन्तुओं को पवित्र और अबध्य मानता है । अन्त मे मै इस प्रश्न के सबसे जरूरी उत्तर को रखना चाहूॅगा । हिन्दू धर्म यज्ञ या हवन करने वाले और न करने वालों मे बंटा हुआ है । यज्ञ या हवन न करने वाली जातियों को ही शूद्र कहा जाता है । उच्च वर्ण के हिन्दुओं में शूद्र वर्ण के हिन्दुओं से एक सांस्कृतिक घृणा का अचेतन पहले से था । मुसलमान जब भारत में आए तो उच्च वर्ण के हिन्दुओं ने उन्हें शूद्रों से मिलते-जुलते एक नए धार्मिक समुदाय के रूप में देखा । कम से कम छुआ-छूत की नीति उच्च वर्ण के हिन्दुओं में शूद्रों और मुसलमानों के प्रति एक समान रही ।
हिन्दुओ के इस सामाजिक-सांस्कृतिक अचेतन का आधार प्पौराणिक काल की एक विशेष घटना से सम्बन्धित है । जब शिव की पहली पत्नी सती ने अपने पति को आमंत्रित न करने के कारण अपमानित होकर पिता दक्ष के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्म-हत्या कर ली थी तो दक्ष के अनुयायियों और शिव के अनुयायियों के बीच एक भयानक दंगा हुआ । इस दंगे मे यज्ञ का विध्वंस तो हुआ ही, दक्ष सहित यज्ञकर्ता ॠषि- पुरोहित भी मारे गए । इस भयानक दंगे के बाद ही शिव को महादेव माना गया । यह सामूहिक रूप से तय हुआ कि मृत्यु के बाद अब से सती की भांति सभी अग्नि मे ही जलाए जाएंगे । ऐसे मे यज्ञ को शिव के अनुयायियों ने अपनी रानी सती के दाह एवं मृत्यु के कारण अपने लिए अशुभ एवं अपवित्र माना । यज्ञ या हवन आदि का बहिष्कार करने वाली यही जातियाँ कालान्तर में स्मृति लोप के कारण शूद्र मान ली गयीं । क्योकि ये यज्ञ कराने के लिए पुरोहितों को आमंत्रित नही करते थे इसलिए पुरोहित वर्ग इनके प्रति रोष और घृणा रखने लगे । मनुस्मृति के निर्माण के समय यानी पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में यज्ञ का बहिष्कार करने वाली जातियों को और बुद्ध के अनुयायियों को निम्न वर्ण शूद्र का मान लिया गया । इस्लाम की सत्ता स्थापित होने पर उन्हें भी शूद्रों के रूप में ही उच्च वर्ण के हिन्दुओं ने देखा । दोनों समुदायों की नासमझी और दंगों के ब्रिटिशकालीन उकसावे और भेदनीति तथा पाकिस्तान के निर्माण की ऐतिहासिक मांग ने मुसलमानों को भारत राष्ट्र के लिए खलनायक बना दिया है ।
सोमवार, 20 अप्रैल 2020
भारत में प्रेम
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
काशीनाथ सिंह का उपन्यास 'उपसंहार '
शनिवार, 11 अप्रैल 2020
शुक्रवार, 20 मार्च 2020
आस्तिकता और नास्तिकता
बुधवार, 11 मार्च 2020
धर्म पर पुनर्विचार
धर्म पर पुनर्विचार
इस्लाम एक सेमेटिक यानी सामी मूल का धर्म है जो मूसा के द्वारा प्रवर्तित यहूदी धर्म से अधिक प्रभावित है । यद्यपि कुरान मे सम्मानित पैगम्बरों के रूप में ईसा मसीह को भी याद किया गया है लेकिन कुरान पढने से स्पष्ट हो जाता है कि मुहम्मद साहब ने मूसा के यहूदी धर्म की तर्रज पर ही अपने मुसलमानों की कल्पना की ।। मुसलमान शब्द के अर्थ मुसल्लम ईमान से ही स्पष्ट है कि इस्लाम और कुरान में वैचारिक तर्क़-वितर्क की बिल्कुल ही इजाजत नहीं है । कुरान की आयते अपने अनुयायियों से पूरी निष्ठा की माॅग करती हैं । जैसा कि सभी जानते हैं कि अरबी का बुत शब्द बुद्ध का ही तद्भव है और दूर-दराज के बौद्ध उपदेशक बुद्ध की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करने लगे थे । बौद्ध धर्म एक अनीश्वरवादी धर्म था और बुद्ध के दर्शन को मूल रूप मे न समझ पाने के कारण ही मुहम्मद साहब ने बुतपरस्ती (बुद्ध की भक्ति) की काफ़ी निन्दा की है । हम सभी जानते हैं कि बुद्ध ने न तो ईश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया और न ही अपनी ही पूजा करने के लिए कहा था । मध्य एशिया और अरब तक पहुंचते-पहुँचते बौद्ध धर्म हीनयान और महायान के रूप में विभाजित और विकृत हो चला था । क्योंकि ईसा मसीह के जन्म के समय उन्हें आशीर्वाद देते समय घुमन्तू बौद्ध भिक्षुओं की प्रभावी भूमिका थी-जिन्हे ही ईसाई धर्मग्रन्थों में देवदूत कहा गया है । यही कारण है कि ईसा मसीह के उपदेशों और व्यक्तित्व में बुद्ध का प्रभाव दिखता है ।
ईसा मसीह के उपदेशों के विपरीत मुहम्मद साहब ने अपने कुरान में मूसा के यहूदी धर्म का अनुसरण किया है । कुरान में स्पष्ट लिखा है कि दुनिया की सभी भाषाओं को बोलने वालों के लिए पवित्र धर्म ग्रन्थ एवं पैगम्बर नाजिल किए गए हैं । कुरान सिर्फ अरबी जानने वालों के लिए नाजिल हुई है । मुहम्मद साहब के जीवन काल मे इस्लाम बहुत दूर तक नहीं फैला था । उन्होंने तो अपने जीवनकाल में यह सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन कुरान पढने के लिए सारी दुनिया के मुसलमान अरबी सीखेंगे । मुहम्मद साहब ने यहूदी धर्म में ईश्वर के लिए प्रचलित शब्द यहोवा के स्थान पर ईश्वर का जो नया नामकरण किया वह अल्लाह था । अ मूल स्वर है और अरबी भाषा का पहला अक्षर अल्लिफ है । इस आधार पर हुए ईश्वर के नामकरण अल्लाह का अर्थ हुआ दुनिया में सबसे पहला । पूरे कुरान मे कुदरत के प्रति आश्चर्य का भाव सबसे महत्त्वपूर्ण है । वे प्रकृति को स्वयं मे ही चमत्कार मानते थे । उनके अनुसार कुदरत स्वयं मे ही चमत्कार है । उसको बनाने वाले अल्लाह के प्रति कृतज्ञता (सिजदा) के लिए अलग से किसी प्रमाण या चमत्कार की आवश्यकता नहीं है ।
कुरान का अधिकांश हिस्सा मुसलमानों के लिए आचार संहिता के निर्माण से सम्बन्धित उपदेशों से भरा हुआ है । मुहम्मद साहब ने क़ोई भी उपदेश अपनी ओर से जारी न कर अल्लाह की ओर से ही जारी किया है । ऐसा बार-बार व्यक्त किया है कि जो कुछ भी कहा जा रहा है वह ईश्वर के परामर्श यानी रज़ामंदी से ही कहा जा रहा है ।
ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार मानव इतिहास मे पहला खतना इब्राहीम की पत्नी ने अपने बीमार बेटे को बचाने के लिए बलि प्रथा के प्रतीक के रूप मे किया था । बच्चे के स्वस्थ हो जाने ने पिता इब्राहीम को प्रभावित किया और उन्होंने खतना प्रथा अपने परिवार पर यानी आने वाली पीढ़ियों पर लागू कर दिया । बाद मे एक काफिले के साथ मिश्र जा पहुंचे यूसुफ जब अपनी योग्यता से वहाँ के शासक के मंत्री बन गए तो अपने भाइयों को भी मिश्र बुला लिया । कई पीढ़ियों बाद खतना के आधार पर ही शिनाख्त कर मूसा ने यहूदियों को एक जुट कर अपने देश इजरायल जाने लिए मिश्र से निकाला । मूसा के नेतृत्व में यहूदियों ने जो विजय हासिल की उसने यहूदियों से अलग बची शेष अरबी जनसंख्या को कुण्ठित कर रखा था । मुहम्मद साहब ने मुसलमानों मे भी अल्लाह के नाम पर खतना प्रथा प्रचलित कर यहूदियों के समानान्तर अरबी लोगों को इस्लाम दे दिया । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह हुई कि यह सब यहूदी लोग एक ही पूर्वज की सन्ताने हैं । कोई दूसरा स्वयं को यहूदी घोषित नहीं कर सकता लेकिन ईसाई धर्म की तरह मुहम्मद साहब ने किसी को भी मुसलमान बनने की इजाजत दी है । जन्म पर आधारित होने के कारण यहूदी अल्पसंख्यक ही रह गए । जबकि मत परिवर्तन की इजाजत देने के कारण इस्लाम धर्म ईसाई धर्म की तरह पूरी दुनिया में फैल गया
बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के मूसा के नेतृत्व में मिश्र से यहूदियों के महा-निष्क्रमण का वर्णन अत्यन्त विस्तार से किया गया है ।| मूसा जब पहाड़ी पर चढ़ कर चिंतन कर रहे थे,उस समय अपने अनुयायियों की धैर्यहीनता तथा सभी के सोने को पिघलाकर एक देवता बनाकर पूजने का प्रयास करने वाले अपनें ही बीच के दूसरे नंबर के नेतृत्व को तथा उसकी बात मानने वालों को बर्बरतापूर्वक हत्या करवाते हैं | यहूदियों के लिए मूसा के निर्देश कितने महत्वपूर्ण थे कि बहुत बाद में ईसा मसीह को भी उसी के आधार पर सूली यानि ऊँचे पर लटका दिया गया | यहूदी आज भी मूसा के उपदेशों से ही संचालित होते हैं जबकि ईसा मसीह के अनुयायियों नें बाद में यहूदियों को समझना छोड़ कर दूसरी जातियों को उपदेश देना शुरू किया | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राष्ट्र की अवधारणा का जन्म भी मूसा के द्वारा यहूदियों को संगठित करने की घटना से ही जोड़ा जाता है | मूसा नें यहूदियों को संगठित किया | उस संगठित शक्ति के नेतृत्व में यहूदियों नें नगर के नगर लुटे और भयंकर कत्लेआम कर काला सागर के पास की वह थोड़ी सी जमीन वापस छीनी जो उनके अनुसार उनके पुरखों की थी | यहूदी धर्म की यह जनसँख्या यहूदियों के लिए खतना अनिवार्य करने वाले उनके पहले पैगम्बर ईब्राहिम के लगभग हजार वर्ष बाद जब खतना किए हुए लोगों की एक बड़ी संख्या मिश्र में हो जाती है .बहुत पहले युसूफ के साथ मिश्र में आए यहूदियों के वंशज मूसा के नेतृत्व में एक -दूसरे को पहचान कर मूसा के नेतृत्व में मिश्र से बाहर निकलने का सफल प्रयास करते हैं |एक संगठित सैन्य शक्ति के रूप में एक लड़ाकू धर्म ,जाति और राष्ट्र के संस्थापक बनते हैं जो यहूदी कहलाती है | मूसा नें यहूदियों को संगठित सैन्य शक्ति के रूप में जो नया चेहरा दिया उसका धर्म की मानवीय संवेदना से कुछ लेना-देना नहीं था | वह इस अंधी आस्था पर आधारित था कि यहोवा के नाम पर जिसका भी खतना हुआ है ,वह दूसरे मनुष्यों से विशिष्ट है | यह सीधे-सीधे दूसरों को हेय और स्वयं यानि यहूदियों को श्रेष्ठ समझने वाला धर्म था | यह विशिष्टता-बोध जीता था और दूसरों का अपमान करता था | इस्लाम के प्रवर्तक स्वयं मुहम्मद साहब के ऊपर भी नीचा देखने की भावना से कूड़ा फेकने का जिक्र मिलता है | इस प्रकार धर्म के नाम पर संगठित श्रेष्ठता और संगठित अपमान करने वाली कट्टरता का सम्बन्ध यहूदियों से है |
जैसा कि मैने पहले भी संकेत किया है- मुहम्मद साहब नें इस्लाम की खतना प्रथा यहूदियों से ही ली थी |.हाँ अरबी भाषा के पहले अक्षर अल्लिफ के अनुसार उन्होंने ईश्वर को यहोवा न कहकर अल्लाह कहा जिसका आशय था सृष्टि में पहला (जैसे अल्लिफ अरबी वर्ण माल का पहला अक्षर है उसी प्रकार दुनिया के पीछे सक्रिय पहली शक्ति को उन्होंने अल्लाह कहा | मुहम्मद साहब की जीवन गाथा पढ़ाकर ऐसा लगत है कि प्रारम्भ में उनका उद्देश्य गौतम बुद्ध और ईसा मसीह की परंपरा का ही मसीहा बनने का था लेकिन जब विरोधियों द्वारा उन पर प्राणघातक हमले बढ गए तो उन्होंने अपना रास्ता मूसा की शैली का कर लिया | खतना और कट्टरता दोनों ही इस्लाम में मूसा के यहूदियों वाली ही रही है | यही कट्टरता जब भारत में आयी तब यहाँ के लोगों को मूर्तिपूजक मानकर वही प्रयोग भारतीयों के साथ भी हुए | प्रतिक्रिया में संगठन के महत्व को देखते हुए मध्य युग में खालसा और सिक्ख पंथ का गठन गुरु गोविन्द सिंह नें किया | वे स्वयं तो मारे गए लेकिन उनकी नीव का भवन बाद में महाराणा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिक्खों नें देखा | ईसाईयों नें ईसा मसीह के नेतृत्व और प्रभाव में सेवा का संगठन बनाया लेकिन मूसा की हिंसक संगठन वाली परंपरा इस्लाम के अनुयायियों की परंपरा सिक्खों में होती हुई ब्रिटिश काल में निर्मित होने वाले हिन्दू संगठनों तक पहुंची | इसे मैं इतिहास में एंटीबाडी बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में देखता हूँ | वह मुसलमानों की तरह ही एक ऐतिहासिक अनुभव प्रक्रिया का परिणाम है -यह कट्टरता की पर्तिक्रियात्मक प्रक्रिया के रूप में है | हिन्दू नामकरण से लेकर उसका चरित्र गढ़ने तक इस्लाम के ऐतिहासिक अनुभव ही इसे शक्ति और उर्जा देते रहे हैं | मैं आज भी दुनिया की किसी कट्टरता के पीछे मूसा का असहिष्णु और क्रोधी चेहरा झांकते हुए पाता हूँ |
मैं जानता हूँ कि धर्म का यह भारतीय चेहरा नहीं है हाँ इसे संगठन का चेहरा अवश्य कहा जा सकता है -एक ऐसा संगठन जिसे मुस्लिम कट्टरता नें रचा है अपनी प्रतिक्रिया में | भारत के मसीहाओं का असली चेहरा बुद्ध और महात्मा गाँधी के चेहरे से मिलता-जुलता हो सकता है ,ईसा मसीह से भी | मुहम्मद साहब का प्रारंभिक आचरण बताता है कि वे भी ईसा मसीह की तरह के ही पैगम्बर होना चाहते थे लेकिन परिस्थितियों नें उन्हें मूसा की शैली का पैगम्बर बना दिया | मुझे् लगता है कि उनकी आत्मा की शांति के लिए इस्लाम के अनुयायियों को ही आगे आना होगा | वे इंसानियत के प्रति अपने कर्तव्यों को समझकर लचीले बनेंगे तभी वे अपने जैसे सनकी कबीले के बनाने के स्थान पर इंसानियत का एक बार फिर फैलाना देख पाएगे |
( क्योंकि सबसे पहले मूसा नें ही एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना की थी जो सिर्फ यहूदियों के लिए हो |यहूदियों को सगा और श्रेष्ठ और दूसरों को पराया मानने वाला दुनिया का पहला सांप्रदायिक संगठन वही था | क्योंकि मुहम्मद साहब नें यहूदियोे की प्रतिस्पर्धा में अपना धार्मिक संगठन 'इस्लाम 'खड़ा किया था ,इसलिए ईसाई धर्म से कुछ कथाएँ लेने के बावजूद इस्लाम यहूदी धर्म का ही प्रति-रूप है | यही कारण है कि जैसे यहूदी दूसरे समुदायों के साथ नहीं रह सकते वैसे ही मुसलमान भी नहीं रह सकते | क्योंकि यह मूसा के शुद्धतावादी नरसंहारों का ऐतिहासिक अचेतन छिपाए है | इस लिए हर बढ़ती जनसँख्या के साथ यह भी अलग राष्ट्र मांगता रहेगाा |दूसरी कौमें नहीं देना चाहेंगी तो उन्हें लड़ना ही होगा | इसराइल ,पाकिस्तान और कश्मीर यह सब एक ही ऐतिहासिक -सांस्कृतिक अचेतन की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं | बिना मानवतावादी आधुनिकतावादी विज्ञानवादी मुस्लिम एवं हिन्दू नवजागरण के मुझे ऐसी धार्मिक-मजहबी ऐसी संकीर्णताओं की समस्या का कोई समाधान नहीं दिखता |
धर्म की पिछली यात्रा को देखकर मैं आज भी आश्चर्य से भर जाता हूँ कि मध्य युग के संगठित अपराधियों नें ईश्वर को भी नहीं छोड़ा |आज भी उनका व्यवहार नहीं बदला है | वे क्योंकि तलवार से हत्या कर सकते थे इसलिए वे इसकी घोषणा कर सकते थे कि ईश्वर उनसे सहमत है | एक मित्र नें मुझसे धर्म की परिभाषा पूछी थी -क्या मैं ऐसा कह सकता हूँ कि प्राचीन काल से ही संगठनों की दादागिरी ही धर्म है | धर्म वही है जिसे विजेता कहता है ....
हिन्दू धर्म भी यहूदियों की तरह एक जन्म आधारित धर्म है । अन्तर यही है कि इसमें सभी श्रेष्ठ नहीं है । भाग्य और प्रारब्धवाद के आधार पर राजा के पक्ष में जनमत तैयार करते ब्राह्मण अपनी भूमिका में बने रहे और उनकी इस भूमिका का लाभ बाद में मुग़ल शासकों को भी मिला | आज भी यह तंत्र आनुवंशिक व्यवस्था का सम्मान करता है | आज के भारतीय लोकतंत्र में ही कई ऐतिहासिक घराने सक्रिय हैं |एक बार निष्ठां तय हो जाती है तो उसमें भगवान की खोज शरू हो जाती है | जिसे देखो और जिधर देखो उधर ही यह तंत्र भक्त पैदा करता रहता है |ये भक्त अपनी जिम्मेदारियों से निरंतर भागते रहते हैं और जिम्मेदारियों का निरवाह करने के लिए एक अदद भगवान की खोज में लगे रहते हैं | यद्यपि इतिहास में कुछ बहुत चालाक ब्राह्मणों नें ब्राहमणों के तटस्थ रहने के जातीय निर्देश को नहीं माना और स्वयं राज सत्ता हथिया ली | इनमें से पुष्यमित्र शुंग का नाम सर्वोपरि है | भारत में गुलामी का मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करने वाले आध्यात्म के नाम पर समर्पण वादी भक्ति का प्रचार किया गया |
हमारी मनोभूमि तथा सामाजिक-सांस्कृतिक स्वीकृति,प्रशंसा और वर्जनाएं ही हमारे कार्य-व्यवहार तथा आचरण को निर्देशित करने वाली आदतों एवं अभिवृत्तियो के रूप में हमारे जीवन का संविधान रचती हैं । हमारी धार्मिक मनोरचनाएं भी हमारे जीवन के पर्यावरण को दूर तक प्रभावित करती हैं । स्पष्ट है कि इस दुनिया को बदलने के लिए सभी धर्मों के गतयुगीन अनुयायियों को एक साथ समझदार होना होगा और सुधरना भी होगा ।
रामप्रकाश कुशवाहा
शनिवार, 25 जनवरी 2020
ज्ञातव्य
सोमवार, 20 जनवरी 2020
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29. कथा समवेत (ष्टमासिक), डॉ. शोभनाथ शुक्ल (सम्पादक), kathasamavet.sln@gmail.com
30. अनुगुंजन (त्रैमासिक), डॉ. लवलेश दत्त (सम्पादक), sampadakanugunjan@gmail.com
31. सीमांत, डॉ. रतन कुमार (प्रधान संपादक), seemantmizoram@gmail.com
32. शोध-ऋतु, सुनील जाधव (संपादक), shodhrityu78@yahoo.com
33. विभोम स्वर, पंकज सुबीर (संपादक), vibhomswar@gmail.com, shivna.prakashan@gmail.com
34. सप्तपर्णी, अर्चना सिंह (संपादक), saptparni2014@gmail.com
35. परिकथा, parikatha.hindi@gmail.com
36. लोकचेतना वार्ता, रविरंजन (संपादक), lokchetnawarta@gmail.com
37. युगवाणी, संजय कोथियल (संपादक), yugwani@gmail.com
38. गगनांचल,डॉक्टर हरीश नवल (सम्पादक), sampadak.gagnanchal@gmail.com
39. अक्षर वार्ता, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा (प्रधान संपादक), डॉ मोहन बैरागी (संपादक) aksharwartajournal@gmail.com
40. कविकुंभ, रंजीता सिंह (संपादक), kavikumbh@gmail.com
41. मनमीत, अरविंद कुमार सिंह(संपादक), manmeetazm@gmail.com
42. पू्र्वोत्तर साहित्य विमर्श (त्रैमासिक), डॉ. हरेराम पाठक (संपादक), hrpathak9@gmail.com
43. लोक विमर्श, उमाशंकर सिंह परमार (संपादक), umashankarsinghparmar@gmail.
44. लोकोदय, बृजेश नीरज (संपादक), lokodaymagazine@gmail.com
45. माटी, नरेन्द्र पुण्डरीक (संपादक), Pundriknarendr549k@gmail.com
46. मंतव्य, हरे प्रकाश उपाध्याय (संपादक), mantavyapatrika@gmail.com
47. सबके दावेदार, पंकज गौतम (संपादक), pankajgautam806@gmail.com
48. जनभाषा, श्री ब्रजेश तिवारी (संपादक), mumbaiprantiya1935@gmail.com, drpramod519@gmail.com
49. सृजनसरिता (हिंदी त्रैमासिक), विजय कुमार पुरी (संपादक), srijansarita17@gmail.com
50. नवरंग (वार्षिकी), रामजी प्रसाद ‘भैरव’ (संपादक), navrangpatrika@gmail.com
51. किस्सा कोताह (त्रैमासिक हिंदी), ए. असफल (संपादक), a.asphal@gmail.com, Kotahkissa@gmail.com
52. सृजन सरोकार (हिंदी त्रैमासिक पत्रिका), गोपाल रंजन (संपादक), srijansarokar@gmail.com, granjan234@gmail.com
53. उर्वशी, डा राजेश श्रीवास्तव (संपादक), urvashipatrika@gmail.com
54. साखी (त्रैमासिक), सदानंद शाही (संपादक), shakhee@gmail.com
55. गतिमान, डॉ. मनोहर अभय (संपादक), manohar.abhay03@gmail.com
56. साहित्य यात्रा, डॉ कलानाथ मिश्र (संपादक), sahityayatra@gmail.com
57. भिंसर, विजय यादव (संपादक), vijayyadav81287@gmail.com
58. सद्भावना दर्पण, गिरीश पंकज (संपादक), girishpankaj1@gmail.com
59. सृजनलोक, संतोष श्रेयांस (संपादक), srijanlok@gmail.com
60. समय मीमांसा, अभिनव प्रकाश (संपादक), editor.samaymimansa@gmail.com
61. प्रवासी जगत, डॉ. गंगाधर वानोडे (संपादक), gwanode@gmail.com pravasijagat.khsagra17@gmail.
62. शैक्षिक उन्मेष, प्रो. बीना शर्मा (संपादक), dr.beenasharma@gmail.com
63. पल प्रतिपल, देश निर्मोही (संपादक), editorpalpratipal@gmail.com
64. समय के साखी, आरती (संपादक), samaysakhi@hmail.in
65. समकालीन भारतीय साहित्य, रणजीत साहा (संपादक), secretary@sahitya-akademi.gov.
66. शोध दिशा, डॉ गिरिराजशरण अग्रवाल (संपादक), shodhdisha@gmail.com
67. अनभै सांचा, द्वारिका प्रसाद चारुमित्र (संपादक), anbhaya.sancha@yahoo.co.in
68. आह्वान, ahwan@ahwanmag.com, ahwan.editor@gmail.com
69. राष्ट्रकिंकर, विनोद बब्बर (संपादक), rashtrakinkar@gmail.com
70. साहित्य त्रिवेणी, कुँवर वीरसिंह मार्तण्ड (संपादक), sahityatriveni@gmail.com
71. व्यंजना, डॉ रामकृष्ण शर्मा (संपादक), shivkushwaha16@gmail.com
72. एक नयी सुबह (हिंदी त्रैमासिक), डॉ. दशरथ प्रजापति (संपादक), dasharathprajapati4@gmail.com
73. समकालीन स्पंदन, धर्मेन्द्र गुप्त 'साहिल' (संपादक), samkaleen.spandan@gmail.com
74. साहित्य संवाद , संपादक - डॉ. वेदप्रकाश, sahityasamvad1@gmail.com
75. भाषा विमर्श ( अपनी भाषा की पत्रिका), अमरनाथ (प्रधान संपादक), अरुण होता (संपादक), amarnath.cu@gmail.com
76. विश्व गाथा, पंकज त्रिवेदी (संपादक), vishwagatha@gmail.com
77. भाषिकी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल, प्रो. रामलखन मीना (संपादक), prof.ramlakhan@gmail.com
78. समवेत, संपादक-डॉ.नवीन नंदवाना, editordeskudr@gmail.com
79. तदभव, संपादक: अखिलेश, akhilesh_tadbhav@yahoo.com
80. रचना संसार, भारत कात्यायन (संपादक), rachanasansar@gmail.com
81. शब्द सुमन मासिक पत्रिका, सम्पादक-डॉ रामकृष्ण लाल ' जगमग', 2015shabdsuman@gmail.com
82. अनुराग लक्ष्य, संपादक- विनोद कुमार, vinodmedia100@gmail.com
83. सरस्वती सुमन (मासिक), संपादक- आनन्दसुमन सिंह, saraswatisuman@rediffmail.com
84. आधारशिला (मासिक), संपादक- दिवाकर भट्ट, adharshila.prakashan@gmail.com
85. प्रेरणा-अंशु (राष्ट्रीय मासिक), संपादक- प्रताप सिंह, prernaanshu@gmail.com
86. युवादृष्टि (मासिक), संपादक- बी सी जैन, suggestion.abtyp@gmail.com, abtypyd@gmail.com
87. संवदिया(सर्जनात्मक साहित्यिक त्रैमासिकी), संपादक- अनीता पंडित, प्रधान संपादक- मांगन मिश्र'मार्तण्ड', samvadiapatrika@yahoo.com
88. सोच विचार, संपादक-डॉ. जितेन्द्र नाथ मिश्र, sochvicharpatrika@gmail.com
89. त्रैमासिक आदिज्ञान, संपादक-जीतसिंह चौहान, adigyaan@gmail.com
90. पतहर तिमाही, संपादक-विभूति नारायण ओझा, hindipatahar@gmail.com
91. चौराहा (अर्द्धवार्षिक), संपादक - अंजना वर्मा, anjanaverma03@gmail.com
92. निराला निकेतन पत्रिका बेला, संपादक -संजय पंकज, dr.sanjaypankaj@gmail.com
93. इंदु संचेतना(साहित्य परिक्रमा), गंगा प्रसाद शर्मा'गुण शेखर'(प्रधान संपादक),थिएन कपिंग(कार्यकारी संपादक,चीन),बिनय कुमार शुक्ल(संपादक), indusanchetana@gmail.com, indusanchetana.blogspot.in
94. समय सुरभि अनंत (त्रैमासिक ), सम्पादक- नरेन्द्र कुमार सिंह, samaysurabhianant@gmail.com
95. औरत मासिक पत्रिका, संपादक डॉ विधुल्लता ,भोपाल (मध्यप्रदेश), aurat.vidhu@gmail.com
96. वार्ता वाहक-श्रीवत्स करशर्मा(संपादक), vartavahak@gmail.com,
97. नागरी संगम-डॉ हरिपाल सिंह(प्रधान संपादक), nagrilipiparishad1975@gmail.
98. सेतु (पिट्सबर्ग से प्रकाशित), अनुराग शर्मा, setuhindi@gmail.com
99. स्त्री, प्रो. कुसुम कुमारी (संपादक), chitra.anshu4@gmail.com
100. चिंतन दिशा, संपादक-हृदयेश मयंक, chintandisha@gmail.com
101. आधुनिक साहित्य, संपादक डॉ. आशीष कंधवे, aadhuniksahitya@gmail.com
102. अनभै, संपादक- डॉ.रतनकुमार पाण्डेय, anbhai@gmail.com
103. कथाबिंब - सं.डॉ.माधव सक्सेना अरविंद, kathabimb@gmail.com
104. संयोग साहित्य- सं.मुरलीधर पाण्डेय, lordsgraphic@gmail.com
105. नई धारा – संपादक- शिवनारायण, editor@nayidhara.com
106. नया पथ- संपादक- मुरली मनोहर प्रसाद सिंह/चंचल चौहान, jlsind@gmail.com<br style="co
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