शनिवार, 25 जनवरी 2020

ज्ञातव्य

"विवेचिता" और "सत्या "की सभी पंक्तियाँ ,चिंतन के गहन निष्कर्ष-क्षणों को शब्दों में बांध लेने के प्रयास में तो जन्मी ही हैं ; इसकी सभी रचनाएं ,अपनी सर्जना और उद्देश्य के स्तर पर -डायरी की उन पंक्तियों की तरह हैं ,जो भावों और विचारों को सुरक्षित रख पाने के लोभ में ही लिपिबद्ध कर ली जाती है .अथवा अन्य तस्वीरों की तरह ये भी अंतर्मन के छायाचित्र हैं ; जिसमें जीवन-प्रवाह को इन स्मृति-चित्रों के रूप में कैद कर लिया गया है . 
      यदि इन रचनाओं में प्रयुक्त उपकरणों को छोड़ दें तो अपनी सम्पूर्ण निर्मिति एवं अभिप्रेत की दृष्टि से ये किसी पूर्वनिर्मित ज्ञानकोश की विशिष्ट छाया में रचित नहीं हैं . यह कहना सत्य की समस्त रचनाओं को देखते हुए आश्चर्यजनक प्रतीत हो सकता हैं ,लेकिन है पूरी तरह सच .