रविवार, 7 जून 2020

यान्त्रिक भौतिकवाद


मार्क्स के जमाने का भौतिकवाद यान्त्रिक भौतिकवाद किस्म का था । यह यन्त्रों के आविष्कार से इतना अधिक अभिभूत था कि उसके लिए मनुष्य भी एक यन्त्र हो गया । तब आर एन ए और डी एन ए की खोज नहीं हुई थी कि जड़ और जीवन के अणुओं की रिश्तेदारी सामने आ पाती । जड़ परमाणु को ऊर्जा के रूप मे देखने और दिखाने वाली आइन्सटीन की आंख भी तब नहीं थी । इससे हत्यारे किस्म के भौतिकवादी और क्रान्तिकारी भी पैदा हुए,जिनके लिए मनुष्य को मारना एक अवांछित यन्त्र को बन्द करने जैसा था । विवेकानंद ,अरविन्दो घोष ,और टैगोर आदि का प्रकृति को जीवित मानने वाली भारतीय दृष्टि तत्कालीन विज्ञान के पिछड़ने के कारण आधुनिक और वैज्ञानिक नहीं समझी गयीं । यह एक दार्शनिक पूर्वाग्रह जैसी समस्या रही है ।