जब तक बीमार नहीं पड़ते है
दवा की दुकाने
बेमतलब की खुली दिखती हैं
गुस्सा ही दिलाते हैं
ट्रैफिक जाम कराने वाले
मनबढ, गतिवाधी आवारा वाहन
कौन कहता है कि वह तुम ही हो !
जिसके लिए जो कुछ भी है
जैसा भी लिखा गया होगा. ....
उसे अपने पाठकों का इंतजार है
जबकि तुम्हें कुछ और पढना है
आगे अभी बढ़ना है
इधर रुकना बेकार है
तुम्हें तो दूसरी गली के बाद बांएं मुड़ना है
तुम बाजार में हो
बाजार सिर्फ गिने-चुने से नहीं बनता
सबकी अपनी-अपनी जरूरतें है
अपनी-अपनी तलाश है
उसे मैने चिढ़-चिढ़ कर सिर धुनते
समय गिनते देखा है
जिसकी शिकायत है कि
कोई उसे नहीं चुनता !