सोमवार, 15 अप्रैल 2024

'हे राम !' : (रामकथा का एक बचा हुआ समकालिक पाठ....)

 'हे राम !' :

(रामकथा का एक बचा हुआ समकालिक पाठ....)
मनुष्य का वास्तविक आत्म बहुत चटिया है
जो वह है और जो वह होना चाहता है
जो उसे होना चाहिए
और जो वह हो सकता है
और परिस्थितिजन्य समीकरणों के बीच
जो उसे होने दिया गया
बहुत सोच प्रस्तर-स्तर उसके होने का चक्रव्यूह रचते हैं
दर्द की एक तेज लहर है -
हे राम !
एक सार्वकालिक सांत्वना है
कि तुमसे भी बुरा जीकर
इस धरती से चला गया है कोई!
कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ घटा
वह तो कुछ भी नहीं है भाई !
कि जो सारी दुनिया को अपना मानकर चाहता हो
उसको भी न चाहने वाले
उसके घर में ही बैठे मिल सकते हैं ।
उसे दिया गया था देश-निकाला
चौदह वर्ष तक सारी बस्तियां छोड़कर
जनशून्य वन-कान्तारों में रहने और भटकने की सजा
या फिर कोई साजिश भी हो सकती थी-
कैकेय नरेश की
रावण के साथ की गयी गुपचुप दुरभिसंधि
अपने भानजे भरत को
निष्कंटक अयोध्या का सिंहासन उपलब्ध कराने के यक्ष में
कि समय के सारे चरित्र छलिया और कपटी हैं
जो हैं , जैसा दिखते हैं और जैसा दिखाया जाता है
वैसा कुछ भी सच नहीं !
जनता भोली और: निरक्षर है
बात-बात में ताली बजाने के लिए तैयार
कि सब संदिग्ध हैं
यहां तक कि सीता पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता
पंचवटी में किसी अज्ञात प्रदेश से आकर
सीता से एकांत मिलन कर रही वह युवती भी
मेरे दुर्दिन में सीता के अपहरण का
कोई अवसर तलाशने वाले
किसी मनबढ सामन्त की
कोई दूती भी तो हो सकती है !
कुछ भी नहीं कहा जा सकता
किसी के भी बेरोजगारी के दिन
बहुत ही त्रासद और निरीह हुआ करते हैं
क्यों कोई अभिशप्त रहना चाहेगा !
सिर्फ कहने के लिए शस्त्र धारी है
इतना सज्जन है तो धनुष-बाण ही क्यों धारण किया !
सिर्फ दिखाने के लिए....
अरे मूर्ख! कुसी स्त्री के लिए
उसके यौवन के च:दह वरिष ही महत्वपूर्ण हुआ करते हैं
और तुम महात्मा बनते फहराने तो
कैसे चलेगी सृष्टि!
कैसे बढेगा वंश !
क्या पता विचलित ही हो गयी हो
सीता का धैर्य
अपने वैचारिक सहमति के साध ही
लक्ष्मण को बलात् दूर भेजकर
चक्रवर्ती रावण के प्रणय-निवेदन पर
सुनहरे अवसर की तलाश में निकल भागी हो
अपनी ही इच्छा से निकल भागी हो सीता रावण के साथ
जैसा की राजेन्द्र यादव भी कह कर चले गए हैं
जाने से पहले लक्ष्मण ने सीता से
अंदर से अर्चना बंद रखने को कहा था
उसके बावजूद सीता का बाहर आना
सीता के चरित्र को भी संदिग्ध तो बनाते ही हैं
अपहर्ता रावण सीता को ढाल बनाकर
रा. की आंखों के सामने ही भाग निकला होगा पंचवटी से
झाड़ियों की ओट से किंकर्तव्यविमूढ़ देखते रह गए होगे राम !
कुछ तो अविश्वास का प्रत्यक्ष आधार रहा होगा
जिसके कारण सीता की अग्निपरीक्षा लेकर भी
विश्वास नहीं कर पाते राम !
राम एक चतुर्दिक साजिशों से घिरे
ऐसे उदात्त नायक का नाम है
अपार रहा होगा जिसका एकान्त दुःख और अपमान
किसी से भी न साझा किए जानें योग्य!
जिसके दु:सह बोझ से ही वह
सरयू की लहरों में डूब गया होगा !?
सच-सच बतलाओ!
तुम क्या कुछ जीकर चले गए हो राम !
कुछ तो हुआ ही है तुम्हारे साथ
कुछ ऐसा अनचाहा,अभद्र और अघटनीय
जिसे सिर्फ तुम ही जानते होगे
हे रहस्यमय चुप्पी वाले दुखभोगी महानायक
जिसे कोई भी दूसरा नहीं जानता !