बकौल कबीर
रहना नहीं देश बेगाना है
फिर काहे को इतराना है
जो है ,जहाँ है,जैसा है
सब छोड-छाडि चलि जाना है
सब समझि-बूझि कर गाना है
ज्यों सब संग मिलि परदेश रवाना है ।
रहना नहीं देश बेगाना है
फिर काहे को इतराना है
जो है ,जहाँ है,जैसा है
सब छोड-छाडि चलि जाना है
सब समझि-बूझि कर गाना है
ज्यों सब संग मिलि परदेश रवाना है ।
(टीका और व्याख्या सहित
ऐसे ही मन मे कौंध गया
अपराधियों के सुधार के लिए जरूरी
और औषधि तुल्य हो सकतीं हैं ये पंक्तियाँ ।)
ऐसे ही मन मे कौंध गया
अपराधियों के सुधार के लिए जरूरी
और औषधि तुल्य हो सकतीं हैं ये पंक्तियाँ ।)