शनिवार, 16 नवंबर 2019

प्रशूद्र

सभी इतिहास-प्र-शूद्रों से
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सब चारण थे
सब गुलाम थे
पराधीन और अपमानित
सभी शूद्र थे
स्वाधीन होने से पूर्व
ऐतिहासिक दुर्दशा को प्राप्त
तलवे चाट गुलामों के थे वंशज सब
सिर्फ एक ही वर्ण के लोग बचे थे जम्बू द्वीप में
पराधीन, पद-कुचलित-मर्दित !
कैसे तब आग लगी थी पूरे जंगल में
और अपमान की अहर्निश आग में जलने से
बचने के लिए भाग रहे थे मारे-मारे
क्षत्रप हत और क्षत्र भूलुण्ठित पडे थे
क्षत्रिय सभी मुँह छिपाए खडे थे
अपने पूर्वजों के तीर्थ को छोडकर
इधर-उधर भाग रहे थे पण्डे
पर्वतों और जंगलों की ओर
तब कोई भी नहीं बचा था श्रेष्ठ
सब क्षुद्र थे !
सब प्रशूद्र थे
सिर्फ श्रेष्ठ शूद्र ही नहीं
अति-शूद्र अति-शूद्रतम !
हे काल-पराजित अतिक्षुद्रो!
हे इतिहास-प्रमाणित अतिशूद्रो!
समय,समाज, संस्कृति और सभ्यता ने
ख़ारिज किया है तुम्हे!
तुममें किसी मक्खी की तरह
फिर उसी घाव पर
फिर उठकर जा बैठने की
इतनी बेचैनी क्यों है ?
संकट की उस निर्णायक घड़ी में
तब तुम स्वयं को
सिर्फ और सिर्फ इन्सान ही घोषित करते हुए
नहीं अघाते थे
स्वयं को कहते रहने के लिए बाध्य थे
वही कहो !
अब भी उसी एकता को जियो
जो अनेकता की भयानक अराजकता और
मूर्खतापूर्ण दुर्घटनाओं की समझदारी के रूप मै
प्राप्त हुई है !
उसी विरासत को अब भी
जानने और जीने की ज़रूरत है
(दिनांक 03/03/2016 के
डाायरी के पन्नो पर प्राप्त)
रामप्रकाश कुशवाहा