गुरुवार, 7 जुलाई 2016

ताकि हम जीत सकें सारी दुनिया! …

जीवन के एक रूप को जीतता हूँ तो दूसरा रूप
आकर खड़ा हो जाता है कुछ नयी चुनौतियां लेकर
मुझे परिस्थितियां  सजीव खलनायक की भूमिका  दिखती हैं
उसमें इतने आयाम छिपे है और इतनी निरीहताएं
 सक्रमण की दूसरों का रोना भी रोना बन जाता है
दूसरों का हारना देखकर लगता है की हार रहा हूँ मैं भी
जोखिमों की अंतहीन श्रृंखला
आंबे वाले समय में दुश्मनों की तरह छिपी हुयी आती हैं
कि  उनका सामना करने के लिए
हमें अपना अभ्यास ,कौशल और व्यायाम बनाए रखना चाहिए
ताकि इस धरती से बनी रहे अपनी पकड़
हमें अपनी देह में डूबकर जीन सीखना होगा
हमें सबसे पहले अपनी देह को जीतना होगा
ताकि हम जीत सकें सारी दुनिया। …