समकालीन काव्यधारा के महत्वपूर्ण कवि आदरणीय रामप्रकाश कुशवाहा जी का सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ' हँसता हुआ बाज़ार' उत्तरआधुनिकता से उपजे बाज़ारवाद की स्थितियों के खतरे से आगाह ही नहीं करता वरन औपनिवेशिक मूल्यों की गहन पड़ताल भी करता है ।
वैचारिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर बेहद गंभीर रचनाओं को लेकर यह काव्य संग्रह आज की कविताओं से इतर हमें सोचने के लिए विवश करेंगी।
जल्द ही मेरी विस्तृत प्रतिक्रिया इस काव्य संग्रह पर आएगी ।
वैचारिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर बेहद गंभीर रचनाओं को लेकर यह काव्य संग्रह आज की कविताओं से इतर हमें सोचने के लिए विवश करेंगी।
जल्द ही मेरी विस्तृत प्रतिक्रिया इस काव्य संग्रह पर आएगी ।
डॉ शिव कुशवाहा शिव